What is Dvorak Technique: कैसे इस तकनीकी ने लाखों लोगों की जान बचाई


चर्चा में क्यों …..

अमेरिकी मौसम विज्ञानी वर्नोन ड्वोरक का 100 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
वर्नोन ड्वोरक ने चक्रवात के आने की पूर्व सूचना की तकनीकी का आविष्कार किया था।

प्रमुख बिन्दु

वर्नोन ड्वोरक ने अपनी जिंदगी में मानवता की भलाई के लिए जो तकनीक इजाद की थी, उसके लिए दुनिया उनकी हमेशा आभारी रहेगी।

आज उन्नत तकनीक, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के युग में भी 50 साल पहले वर्नोन ड्वोरक ने चक्रवात के आने की पूर्व सूचना के मद्देनजर जो तकनीक तैयार की उस पर आज भी भरोसा किया जाता है।

वर्नोन ड्वोरक कौन थे

वर्नोन ड्वोरक एक अमेरिकी मौसम विज्ञानी थे, जिन्हें 1970 के दशक की शुरुआत में ड्वोरक तकनीक विकसित करने का श्रेय दिया जाता है। तब से इस तकनीक को कई बार अपग्रेड किया गया है और इस साल मई में हाल ही में एक सॉफ्टवेयर अपडेट के बाद इसे “एडवांस्ड ड्वोरक तकनीक” (ADT) नाम दिया गया। जिसे नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के नेशनल हरिकेन सेंटर की तरफ से बनाया गया है।

ड्वोरक तकनीक

इस तकनीक को पहली बार 1969 में विकसित किया गया था और उत्तर पश्चिमी प्रशांत महासागर में तूफानों को देखने के लिए इसका परीक्षण किया गया था।

इस तकनीकी में चक्रवातों के आने पहले की सूचना का पता लगाने के लिए उष्णकटिबंधीय चक्रवात जैसे तूफान, चक्रवात और टाइफून की विशेषताओं की
जांच के लिए पोलर सेटेलाइट से हासिल की गई तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया था।
चक्रवात का पता लगाने के लिए दिन में स्पेक्ट्रम की तस्वीरों का भी उपयोग किया जाता था, जबकि रात में समुद्र की तस्वीरों का उपयोग करके देखा जाता था।

इस तकनीक को मौसम संबंधी इनोवेशन में एक बड़ी उपलब्धि माना जाता है। यह तकनीक अपने आविष्कार के बाद विकास के कई चरणों से होकर से गुजरी है।

अमेरिकन मौसम विज्ञान सोसायटी के जर्नल में प्रकाशित 2006 के एक शोध पत्र के अनुसार “ड्वोरक तकनीक उष्णकटिबंधीय चक्रवात के विकास और क्षय के एक अवधारणा मॉडल पर आधारित क्लाउड पैटर्न की मान्यता तकनीक थी।”

इस सांख्यिकीय तकनीक के माध्यम से मौसम वैज्ञानिक चक्रवात के पैटर्न को मापने में सक्षम हैं। जैसे घुमावदार बैंड, आंख और केंद्रीय घने या ठंडे क्षेत्र और कतरनी।

विशेषज्ञों का दावा है कि यह तकनीक चक्रवात की तीव्रता का अनुमान लगाने के लिए एक गाइड की भूमिका निभाती है जो स्थानीय प्रशासन के लिए तटीय या अन्य आस-पास के निवासियों को सही समय पर वहां से निकाल कर सुरक्षित जगह पहुंचाने में मदद करता है।

भारतीय मौसम वैज्ञानिकों का दावा है कि “इस तकनीक का इस्तेमाल कर हासिल की गई तस्वीरों से तूफान संरचना और उसके पैटर्न का पहचान किया जा सकता है। साथ ही ड्वोरक तकनीक चक्रवात की तीव्रता का अनुमान लगाने में मदद करती है।

चक्रवात के बारे में

चक्रवात एक ऐसी संरचना है जो गर्म हवा के चारों ओर कम वायुमंडलीय दाब के साथ उत्पन्न होती है। जब एक तरफ से गर्म हवाओं तथा दूसरी तरफ से ठंडी हवा का मिलाप होता है तो वह एक गोलाकार आंधी का आकार लेने लगती है इसे ही चक्रवात कहते हैं।

इसमें एक निम्न दबाव केंद्र के आसपास बंद वायु परिसंचरण शामिल होता है। यह बंद वायु परिसंचरण पृथ्वी की सतह के ऊपर और ऊपर वायुमंडलीय असंतुलन के कारण होता है, जो पृथ्वी के रोटेशन (कोरियालिस बल) के साथ मिलकर होता है

आईएमडी का कहना है “एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तीव्र, निम्न दबाव क्षेत्र या उष्णकटिबंधीय या उप-उष्णकटिबंधीय पानी के ऊपर के वातावरण में एक चक्कर है”।

इसकी अधिकतम गति 30 से 300 किलोमीटर प्रति घंटा हो सकती है। यह एक गोलाकार पथ में चक्कर लगाती घूमती हुई राशि होती है। इसकी गति अत्यंत तेज होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इसे चक्रवात तथा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में विली-विली उत्तरी गोलार्द्ध में हरीकेन या टाइफून, मैक्सिको की खाड़ी में टारनेडो कहते हैं।

चक्रवात के प्रकार

उष्णकटिबंधीय चक्रवात

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात

प्रतिचक्रवात

उष्णकटिबंधीय चक्रवात

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में 5° से 20″ अक्षांशों के बीच अधिक आते हैं। भारत में बंगाल की खाड़ी से उत्पन्न चक्रवात पश्चिम बंगाल, ओडिसा, आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु तथा अरब सागर से उत्पन्न चक्रवात गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों के समुद्रतटीय भागों को अधिक प्रभावित करते हैं।

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात

ये चक्रवात 30° से 65° अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्द्ध में आते हैं। ये आकार में अधिक विस्तृत होते हैं परन्तु पवनों की गति कम होने के कारण उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की तुलना में कम विनाशकारी होते हैं।

प्रतिचक्रवात (Anti cyclone)

प्रतिचक्रवात में वायु की दिशा, चक्रवात के विपरीत होती है। इसमें केन्द्र में उच्च वायुदाब रहता है और बाहर की ओर वायुदाब क्रमशः कम होता जाता है। इसमें पवन की गति धीमी पड़ जाती है। मौसम सामान्य हो जाता है। प्रतिचक्रवात की उपस्थिति, चक्रवात की समाप्ति का सूचक है।

चक्रवातों का नामकरण

हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा थाईलैंड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवातों के नाम तय करते हैं।

जैसे ही चक्रवात इन आठों देशों के किसी भी हिस्से में पहुँचता है, सूची से अगला या दूसरा सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है। इसके कारण किसी नाम का दोहराव नहीं किया जाता है।

दुनियाभर के हर महासागरीय बेसिन में बनने वाले चक्रवातों का नाम क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों (RSMCs) और उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्रों (TCWCs) द्वारा रखा जाता है। क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र (Regional Specialised Meteorological Centre- RSMC), नई दिल्ली में स्थित है।

प्रत्येक देश उन दस नामों की एक सूची तैयार करता है जो उन्हें चक्रवात के नामकरण के लिये उपयुक्त लगते हैं।

शासी निकाय अर्थात् RSMC प्रत्येक देश द्वारा सुझाए गए नामों में आठ नामों को चुनता है और उसके अनुसार आठ सूचियाँ तैयार करता है जिनमें शासी निकाय द्वारा अनुमोदित नाम शामिल होते हैं।

भारत के मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने हाल ही में भविष्य के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के 169 नामों की एक सूची जारी की है, जो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उत्पन्न होंगे।

चक्रवाती तूफान का नामकरण करने की शुरुआत इसलिए हुई ताकि इससे होने वाले खतरे के बारे में लोगों को समय रहते सतर्क किया जा सके, संदेश आसानी से लोगों तक पहुँचाया जा सके तथा सरकारें और लोग इसे लेकर बेहतर प्रबंधन और तैयारियाँ कर सकें, लेकिन तब नामकरण की प्रक्रिया व्यवस्थित नही थी।

विशेषज्ञों के अनुसार, नामकरण की विधिवत प्रक्रिया बन जाने के बाद यह ध्यान रखा जाता है कि चक्रवाती तूफानों का नाम आसान और याद रखने लायक होना चाहिये इससे स्थानीय लोगों को सतर्क करने, जागरूकता फैलाने में मदद मिलती है।