ट्रिपल डिप’ ला नीना; भारतीय मानसून इसका प्रभाव
चर्चा में क्यों ?
ऑस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो ने प्रशांत महासागर में लगातार तीसरे वर्ष “ला नीना” घटना की पुष्टि की है।
प्रमुख बिन्दु
ऑस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञान ब्यूरो ने 13 सितंबर को प्रशांत महासागर में लगातार तीसरे वर्ष ला नीना घटना की पुष्टि की।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) ने 31 अगस्त को कहा था कि “यह समुद्री और वायुमंडलीय घटना इस साल के अंत तक चलेगी। यह इस सदी में पहली बार है जब उत्तरी गोलार्ध में लगातार तीन सर्दियों में ‘ट्रिपल डिप ला नीना बन जाएगा।
WMO ने भविष्यवाणी की है कि “वर्तमान ला नीना, सितंबर 2020 में शुरू हुआ था, जिसके सितंबर-नवंबर 2022 तक रहने की 70 प्रतिशत संभावना है और दिसंबर-फरवरी 2022/2023 तक 55 प्रतिशत रहने की संभावना है।
“ला नीना घटना का लगातार तीन साल होना असाधारण है। इसका शीतकालीन प्रभाव अस्थायी रूप से वैश्विक तापमान में वृद्धि को धीमा कर रहा है लेकिन यह दीर्घकालिक प्रवृत्ति को रोक या उलट नहीं देगा।”
अल नीनो और ला नीना
अल नीनो और ला नीना स्पेनिश शब्द हैं। जिनका अर्थ है ‘लड़का’ और ‘लड़की। मौसम के लिहाज से ये परस्पर विपरीत घटनाएं हैं। जिस दौरान भूमध्य रेखा के साथ प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान असामान्य रूप से गर्म या ठंडा हो जाता है।
साथ में, इन्हें अल नीनो-साउथर्न ओसिलेशन सिस्टम, या ‘ईएनएसओ’ के रूप में जाना जाता है।
ENSO की स्थिति, ग्लोबल लेवल पर एटमॉस्फेरिक सर्कुलेशन को प्रभावित करती है। ऐसे में, यह विश्वस्तर पर तापमान और बारिश दोनों को बदल सकती है।
यह एक आवर्ती घटना है और तापमान में परिवर्तन के साथ ऊपरी और निचले स्तर की हवाओं, समुद्र के स्तर के दबाव और प्रशांत बेसिन में उष्णकटिबंधीय वर्षा (ट्रॉपिकल रेनफॉल) के पैटर्न में बदलाव होता है।
आम तौर पर, अल नीनो और ला नीना हर चार से पांच साल में होते हैं। अल नीनो की घटना ला नीना की तुलना में अधिक बार होता है।
भारत के मानसून को प्रभावित करता है ला नीना
भारत में अल नीनो के दौरान अत्यधिक गर्मी और सामान्य स्तर से नीचे बारिश देखी जाती है हालांकि, अल नीनो सिर्फ एक कारण नहीं है या इसका कोई डायरेक्ट लिंक नहीं है। लेकिन साल 2014 में, अल नीनो साल था और इस दौरान भारत में जून से सितंबर तक 12 प्रतिशत कम वर्षा हुई।
दूसरी ओर, ला नीना साल में, भारत में गर्मियों में अच्छी बारिश होती है। इस साल, भारत में 740.3 मिमी बारिश हुई है, जो 30 अगस्त तक मौसमी औसत से 7 प्रतिशत अधिक है।
इस वर्ष राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 30 में बारिश हुई है जिसे या तो ‘सामान्य’, या ‘अधिक’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
ऐसे में, ला नीना का जारी रहना भारतीय मानसून के लिए एक अच्छा संकेत है।
1950 के बाद 6 बार दो साल से अधिक चला ला नीना
भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्तमान ला नीना चरण सितंबर 2020 से प्रचलित है। 1950 के बाद से, दो साल से अधिक समय तक चलने वाले ला नीना का केवल छह उदाहरण दर्ज किया गया है।
ला नीना की स्थिति तीन साल से क्यों जारी है
वैज्ञानिकों के अनुसार “यह आश्चर्यजनक है कि यह पिछले तीन वर्षों से जारी है। यह भारत के लिए अच्छा हो सकता है, लेकिन कुछ अन्य देशों के लिए नहीं।
जलवायु परिवर्तन की स्थिति के तहत, इस तरह के और अधिक उदाहरणों की उम्मीद करनी चाहिए। ऐसी असामान्य परिस्थितियों के पीछे जलवायु परिवर्तन एक प्रेरक कारक हो सकता है। अल नीनो बढ़ती गर्मी और अत्यधिक तापमान से जुड़ा हुआ है। हाल ही में अमेरिका, यूरोप और चीन के कुछ हिस्सों में इसका बड़ा असर देखा गया है।
1901 के बाद सबसे गर्म शीतकालीन मानसून
आईएमडी के आंकड़ों में कहा गया है कि 2021 में, दक्षिणी भारतीय प्रायद्वीप ने 1901 के बाद से अपने सबसे गर्म रिकॉर्ड किए गए शीतकालीन मानसून का अनुभव किया, जिसमें अक्टूबर और दिसंबर के बीच 171 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई।
ला नीना की स्थिति और चक्रवात निर्माण
ला नीना वर्षों के दौरान अटलांटिक महासागर और बंगाल की खाड़ी में अक्सर तीव्र तूफान और चक्रवात आते हैं, उत्तर हिंद महासागर में भी।
चक्रवातों की संख्या में वृद्धि की संभावना कई कारकों के योगदान के कारण होती है। इसमें उच्च सापेक्ष नमी और बंगाल की खाड़ी के ऊपर अपेक्षाकृत कम हवा का झोंका शामिल है।
मानसून के बाद के महीने यानी अक्टूबर से दिसंबर तक उत्तर हिंद महासागर के ऊपर चक्रवाती विकास के लिए सबसे सक्रिय महीने होते हैं। इसमें नवंबर चक्रवाती गतिविधि के लिए चरम सक्रियता के रूप में होता है।