The Rise of Darkness


“सौरमण्डल के निवासियों ये तुम्हारा अधिकार क्षेत्र नही है … ये interstellar space ब्रह्मण्ड में हमारी सम्पति है .. क्या तुम यहाँ मरने के लिए आए हो ?? .. यहाँ से हमारे “महान मालिक” का शासन आरंभ होता है … “….

धूमकेतुओं पर सवार काले रंग के उन अजीब प्राणियों में से एक ने सौरमण्डल के रक्षक सैनिकों को देखने के पश्चात कहा ..

“यह पूर्णतया सार्वजनिक क्षेत्र हैं, मूर्ख दानव… इस पर तुम्हारी मनमर्जी कदापि नही चल सकती है …आखिर यह क्षेत्र भी उसी “मिल्की वे आकाशगंगा” का ही भाग है जिसका संचालन “महाकाल” करते हैं “….. देवताओं के प्रमुख सैनिक ‘धुंध’ ने उत्तर दिया …

दरअसल सौर्यमण्डल की सुरक्षा व्यवस्था में होने वाली सेंध का पता लगाने के लिए ये सैनिक सौर्यमण्डल की अंतिम सीमा रेखा … “हीलियों पास” को पार करके interstellar space में जा पहुँचे थे ..जहां खतरनाक गामा किरणें हर समय तबाही मचाती रहती हैं ..

लेकिन हमारा सूर्य अपने चारों ओर मजबूत “मैग्नेटिक फील्ड” के एक सुरक्षा कवच का निर्माण करता है और सौर्यमण्डल व उसके ग्रहों की इन हाई एनर्जी गामा किरणों से रक्षा करता है ….

“तुम देवता लोग न्याय की बात करते हो जिन्होंने अपने भाई दैत्यों को नर्क के समान ग्रह पर रहने के लिए मजबूर कर दिया है और पूरे सौर्यमण्डल पर अधिकार कर लिया”

फिर वह अजीब प्राणी आगे बोला … “अब तुम्हारा समय समाप्त होने वाला है देवताओं, “तृतीय युग” की समाप्ति के साथ ही महान इन्द्र का अस्तित्व भी मिट जाएगा, सप्तसिंधु से वैदिक धर्म नष्ट हो जाएगा, लोग इन्द्र को पतित धोषित कर देंगे , इन्द्र की ऊर्जा के सारे स्रोत नष्ट हो जाएंगे । अब हमारे महान मालिक का समय आने वाला है और तुम इसे रोक नही सकते, कोई भी नहीं रोक सकता …अलेह फतेह …”

उधर पृथ्वी में …

स्थान .. उत्तरी जम्बूद्वीप के पार कुछ निर्जन द्वीप समूह ..

“दादा, पूरे दो हजार वर्ष बीत गए हैं .. क्या हम इसी शाप को भोगने के लिए पैदा हुए हैं ??”..

लगभग सत्तर वर्षीय उस युवा ने अपने साइबेरियन कुत्तों को सहलाते हुए और आगे बढ़ने का इशारा करते हुए कहा ..

कुत्तों की यह प्रजाति साइबेरिया के शीत रेगिस्तान के निवासियों के शिकार में अत्यंत सहायक है। इनकी ऊँचाई लगभग चार फुट होती हैं तथा इनके कान किसी बकरी की तरह ऊपर की ओर खड़े होते हैं ..

ये अत्यंत खतरनाक शिकारी हैं … वास्तव में इन्हें कुत्ता सिर्फ इनकी नस्ल की वजह से कहा जाता है, अन्यथा ये किसी आदमखोर से कम नहीं है …

वह युवा देखने में अत्यंत दुबला-पतला और उज्जड लग रहा था, उसकी लम्बाई लगभग साढ़े सात फुट थी.. उसे देखकर लग रहा था कि उसकी भुजाएं और सीना अभी आकार ले रहा था, उसकी भुजाओं को अभी आकार लेना भी था ..

क्योंकि उसकी आँखों में सप्तसिंधु के लिए जो क्रोध और प्रतिशोध की ज्वाला भरी हुई थी ..

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उसके लिए उसके आत्मबल के साथ उसका बाहुबल भी ऐसा होना चाहिए था जो महान प्रभु इन्द्र और प्रभु रुद्र के उपासक गन्धर्वों और आर्य जाति के योद्धाओं के सर को उनके धड़ से उखाड़ सके …

उसने उस पराजय की गाथा को अपने बचपन से कई सुना हुआ था .. जिसमे प्रभु रुद्र ने उसकी जाति को भीषण युद्ध में पराजित करके इस दुर्गम प्रदेश में जीवन यापन के लिए अभिशप्त कर दिया था …

और पिछली बार जब नई दुनियां के माया साम्राज्य पर उसके पिता ने हमला किया था, तो सूर्यवंशी योद्धाओं से युद्ध करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी जबकि उसकी मां ने उसे बचपन में ही त्यागकर दूसरा विवाह कर लिया ..

उसका बचपन इतनी विपत्तियों और झंझावातों से गुजरा था कि शायद कोई अन्य व्यक्ति इतना सब कुछ देखकर जीवित भी नही रह सकता था …

उसको अपने जीवन में अभी तक सिर्फ एक व्यक्ति से प्रेम मिला था, वे थे उसके दादा …. जिन्होंने उसे वह सारा प्यार देने का प्रयास किया जो मां और बाप दे सकते थे ।

अतः वह केवल अपने दादा के सामने ही झुकता था उनसे कभी सर उठाकर भी बात नही करता था .. इसके साथ ही उसके हृदय में अपने दादा के अलावा किसी के लिए कोई भावनाएं नही थी ..

उसका दादा जो दो-शताब्दियों से भी ज्यादा का जीवन व्यतीत कर चुका था और कई युद्धों और लूट पाट में भाग ले चुका था ..

उसने दो फ़ीट मोटे बर्फीले रेगिस्तान में आगे बढ़ते हुए कहा .. “शायद अभी देवताओं को यही कबूल है, कभी भरतभूमि का पश्चिमी भाग हमारे पूर्वजों का घर हुआ करता था .. हम वहां स्वर्ग की तरह सुख भोगते थे “…

“दो पवित्र नदियों दजला और फ़रात की वह भूमि अत्यंत उपजाऊ थी .. हमारे नगर उर, अक्काड, बेबीलोन आदि सभ्यता का केंद्र बन गए थे”, फिर उन्होंने तुलना करते हुए कहा …

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“यदि सप्तसिंधु के महान नगरों धौलावीरा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, हड़प्पा, राखीगढ़ी आदि को छोड़ दिया जाए तो हमारे नगरों की दुनियां में कोई तुलना नही थी …फिर वह बोला “हमारा सप्तसिंधु के साथ अच्छा व्यापार वाणिज्य था लेकिन इस व्यापार का अधिकांश लाभ सप्तसिंधु को प्राप्त होता था” ..

“सप्तसिंधु के सूती वस्त्र, गहने, अनाज, शीप, विलासिता सामग्री, पशुओं और सबसे महत्वपूर्ण उनकी तकनीकी आदि की हमारे नगरों में इतनी मांग बढ़ गई थी कि हमारा सारा धन सप्तसिंधु की ओर प्रवाहित हो रहा था” …

“एक समय ऐसा आया कि हम सप्तसिंधु की करों के बोझ के नीचे दब गए …. धीरे धीरे हमारे सम्बंध सप्तसिंधु से खराब होने लगे” ..

फिर उसके दादा ने कुछ सोचते हुए धीमे से कहा ”लेकिन कोई ऐसी बात थी जो भरतभूमि और मुख्य रूप से सप्तसिंधु के निवासियों को बाकी दुनियां से अलग करती थी ..

उनकी जीवन शैली अलग थी .. उनकी आयु अधिक होती थी … हमारे लोग मुश्किल से चालीस वर्ष में ही मर रहे थे जबकि सप्तसिंधु के निवासी सौ वर्ष से भी अधिक जीवन यापन करते थे” ..उस युवा ने अपने दादा से प्रश्न करते हुए कहा “तो क्या दादा सप्तसिंधु के लोग कुछ बातें हमारे लोगों से छिपा रहे थे ?? ..

“हमने जब इस बारे में पता करने के लिए अपने गुप्तचर सप्तसिंधु भेजे तो हमें पता चला कि पूरा सप्तसिंधु ही रहस्यमयी हैं .. वहाँ की नदियां, वनस्पतियां और वायु में कुछ खास है जो दुनियां में अन्य कहीं नही पाया जाता है जिसे उन्होंने पूरी दुनिया से बचाकर रखा था “…

उसके दादा ने उत्तर दिया ..”वो क्या था दादा”… युवक ने कौतूहल से पूंछा …”वो कभी आगे बताता हूँ, आज तुम्हे उस खतरनाक समुद्री शील का शिकार करना है जो छह महीने बाद समुद्र से बाहर आ रही है, यदि तुम उसका दिल पाने में सफल हुए तो अगली लूट का नेतृत्व तुम करोगे .. वरुण देवता तुम्हारी सहायता करें “….

उसके दादा ने कहा …उस नवयुवक के मन में प्रतिशोध की ज्वाला भरी हुई थी उसने कहा “दादा आप सप्तसिंधु के देवताओं को आज भी क्यों मानते हैं जबकि वे झूठे है और यदि है भी तो वे सदा हमारे विरुद्ध ही रहे हैं .. क्या उन्होंने हमारी सहायता कभी की है ??…..

“…उसके मन में अभी बहुत कुछ कहने को था लेकिन वह दादा के सामने ज्यादा कुछ नही कह सका …

उसके आसमान की ओर देखा और महान मालिक को याद किया .. जिस पर उसे धीरे धीरे अटूट विश्वास होता जा रहा था ..उ

सके सामने विशाल उत्तरी ध्रुव महासागर था जो बर्फ की पतली चादर से ढका हुआ था … विशाल और खूंखार शील अभी जल के अंदर ही तैर रही थी लेकिन सूर्य के प्रकाश में उसकी छाया जल के बाहर दिखाई दे रही थी …

उसे देखकर उस युवा में क्रोध और आक्रोश बढ़ता जा रहा था .. वह क्रोध सिर्फ उस शील का दिल प्राप्त करने के लिए नही था .. अपितु उस अगली लूट के लिए था जिसका वह नेतृत्व करने वाला था ।।

जारी ..

लेखक : ध्रुव कुमार