अवैध घुसपैठियों की समस्या व ह्यूमन ट्रैफिकिंग


चर्चा में क्यों?

जैसे ही जेलें ओवरफ्लो होती हैं, बीएसएफ प्रवासियों को बांग्लादेश लौटने की अनुमति देता है।

प्रमुख बिन्दु

सुरक्षा बल के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल 5 अक्टूबर तक, 287 व्यक्तियों को बांग्लादेश के बॉर्डर गार्ड को सौंप दिया गया था। हालांकि, अधिकारी इस बात पर जोर देते हैं कि केवल वे लोग जो नशीले पदार्थों, नकली मुद्रा और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी में शामिल नहीं हैं, उन्हें वापस लौटने की अनुमति दी गई है।

23 सितंबर को, दो महिलाओं को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के जीतपुर की सीमा चौकी के पास अवैध रूप से अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करते समय रोक लिया था।

पूछताछ करने पर, उन दोनों ने कहा कि वे छह महीने पहले भारत आए थे, बेंगलुरु में काम कर रहे थे, और जब उन्हें पकड़ा गया तो वे घर वापस जा रहे थे।

इसी तरह चार बांग्लादेशी नागरिकों को उसी जिले में जीतपुर और रंगघाट की सीमा चौकियों के पास रोका गया था। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि वे कुछ समय पहले अलग-अलग शहरों में काम की तलाश में भारत आए थे और अब बांग्लादेश लौट रहे थे।

बीएसएफ अधिकारियों ने उन्हें पुलिस को सौंपने के बजाय, बांग्लादेश में अपने समकक्षों, बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) के साथ बैठक की और उन्हें बांग्लादेशी अधिकारियों को सौंप दिया।

जेलों की भीड़भाड़ सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है, अवैध सीमा पार करने के कई मामलों में, बीएसएफ सीमा पार करने वालों को गिरफ्तार नहीं कर रही है, बल्कि उन्हें बीजीबी को सौंप रही है, जिसे अक्सर “मानवता और सद्भावना का इशारा” कहा जाता है।

बीएसएफ के दक्षिण बंगाल फ्रंटियर के डेटा से पता चलता है कि 2022 में, 5 अक्टूबर तक, फ्रंटियर ने 287 व्यक्तियों को बीजीबी को सौंप दिया था, जिसमें 146 पुरुष, 102 महिलाएं, 38 बच्चे और एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति शामिल थे।

बीएसएफ अधिकारी इस बात पर जोर देते हैं कि जो लोग नशीले पदार्थों, खांसी की दवाई, नकली नोट, सोना और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी में शामिल नहीं हैं इसीलिए उन्हें मानवीय आधार पर बीजीबी को सौंपा गया।

ऐसे कई लोग सीमा पार कर काम की तलाश में आते हैं, भारत में काम करके घर लौटते हैं। उनमें से कुछ रिश्तेदारों से मिलने या इलाज कराने के लिए घुसने की कोशिश करते हैं।

भारत के जेल सांख्यिकी-2021 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि देश के सुधार गृहों में बंद 5,565 विदेशी कैदियों में से अकेले पश्चिम बंगाल में 1,746 (सभी कैदियों का 31%) विदेशों से आए हैं।

पश्चिम बंगाल ने अपनी जेलों (30.5% या 329 व्यक्ति) में बंद विदेशी दोषियों की सबसे अधिक संख्या और अपनी जेलों में बंद विदेशी विचाराधीन कैदियों की सबसे अधिक संख्या (28.4% या 1,179 व्यक्ति) दर्ज की है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि विदेशी कैदियों में, बांग्लादेशी नागरिक सभी विदेशी कैदियों के बहुमत – 40.5% – शामिल हैं। अधिकांश विदेशी नागरिकों को अवैध रूप से सीमा पार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

बीएसएफ दक्षिण बंगाल फ्रंटियर के साथ अवैध रूप से सीमा पार करने के लिए हर साल हजारों लोगों को पकड़ता है।

मानव तस्करी की समस्या

मानव तस्करी एक बहुत ही जटिल और व्यापक समस्या है। इस समस्या ने दक्षिण एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र के लगभग चार करोड़ लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। अनुमान के मुताबिक़ इससे प्रभावित लोगों में महिलाओं और बच्चों की आबादी 71 प्रतिशत है।

दक्षिण एशिया में भारत और बांग्लादेश ऐसे देश हैं, जो मानव तस्करी के लिए स्रोत, आवागमन और गंतव्य के रूप में जाने जाते हैं। समाज के ज़्यादातर वंचित और आर्थिक तौर पर कमज़ोर तबके के लोग इसका शिकार होते हैं।

भारतीय जांच दल ने कुछ समय पहले मानव तस्करी के एक रैकेट का पर्दाफ़ाश किया था, जिसमें बांग्लादेशी लड़कियों/महिलाओं के साथ-साथ विस्थापित रोहिंग्याओं को भारत के विभिन्न हिस्सों में ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से लाया जा रहा था।

इस संगठित अपराध में शामिल तस्करों का जाल दोनों देशों के विभिन्न क्षेत्रों में फैला हुआ है, जहां वह अपने दूसरे साथियों के साथ इसको अंज़ाम देते हैं।

एक अन्य घटना में मई, 2022 में 26 विस्थापित रोहिंग्याओं को पकड़ा गया था, जिनमें 12 बच्चे और 8 महिलाएं शामिल थीं। ये लोग जम्मू में शरणार्थी शिविरों से भागकर बांग्लादेश जाने की कोशिश कर रहे थे। इन लोगों को फिलहाल असम के सिलचर में डिटेंशन सेंटर में रखा गया है।

पारदर्शी सीमाएं

भारत और बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में मानव तस्करी बहुत आसान है। दोनों देश क़रीब 4,096.7 किलोमीटर लंबी और दुनिया की पांचवीं सबसे लंबी अंतरराष्ट्रीय  सीमा को साझा करते हैं।

इसमें से लगभग 60 प्रतिशत सीमा पर तो बाड़ लगी हुई है, लेकिन सीमा का बड़ा इलाका नदियों, तालाबों, खेतों, गांवों और यहां तक कि ऐसे घरों से लगा हुआ है, जहां उसका एक हिस्सा भारत में तो घर का दूसरा हिस्सा बांग्लादेश में पड़ता है।

इतना ही नहीं, समुचित सड़कें नहीं होने और दुर्गम इलाक़ों की वजह से सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा करना आसान काम नहीं है। परिणाम स्वरूप, अवैध समूहों के लिए सीमा के इन सुराखदार और अव्यवस्थित हिस्सों का उपयोग कर यहां-वहां आना-जाना आसान हो जाता है।

वर्तमान क़ानूनी तंत्र

इस अपराध पर लगाम लगाने के लिए दोनों देशों में कई मानव तस्करी रोधी क़ानून हैं।

भारत में संविधान के आर्टिकल 23(1), आईपीसी 366-373, अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956 के अलावा महिलाओं एवं बच्चों की सुरक्षा से संबंधित दूसरे क़ानूनों के अंतर्गत भी प्रावधान हैं।

मानव तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक के मसौदे पर अभी काम चल रहा है, जिसके तहत मानव तस्करी की समस्या का पूर्णरूप से निवारण होने की उम्मीद है।

ऐसे में जबकि भारत और बांग्लादेश दोनों देशों में मानव तस्करी से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए विधायी, संवैधानिक और अन्य प्रकार के क़ानूनी प्रावधान हैं, तो ज़रूरत है कि इन प्रावधानों पर अमल करने के लिए और इन्हें लागू करने के लिए समान रूप से पुरज़ोर प्रयास किए जाएं। 

इसके लिए इसमें शामिल विभिन्न हितधारकों और सरकारी अधिकारियों के मध्य अधिक तालमेल और सहयोग की आवश्यकता है, ताकि इस तरह की मानव तस्करी के संभावित पीड़ितों की सुरक्षा की जा सके और इस आपराधिक कृत्य को अंज़ाम देने वाले अपराधियों के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाया जा सके।

वर्ष 2015 में नई दिल्ली और ढाका के मध्य किए गए एमओयू में सभी प्रकार की मानव तस्करी, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने, उनके बचाव और उनकी रिकवरी के लिए सहयोग को बढ़ाने का एक व्यापक दृष्टिकोण रहा है।

चुनौतियां

इस समस्या से निपटने में एक सबसे बड़ी बात जो सामने आती है, वो है कि जिस स्तर पर दोनों देशों में मानव तस्करी के मामले सामने आते हैं, उनकी तुलना में इसमें लिप्त लोगों की जांच, अपराध सिद्ध होने और सज़ा मिलने की दर बहुत कम है।

यह भी देखा गया है कि जिन अधिकारियों पर मानव तस्करी पर लगाम लगाने की ज़िम्मेदारी है, वो ही कई मामलों में अपराधियों के साथ इन घटनाओं में संलिप्त पाए गए हैं।

भारत और बांग्लादेश दोनों ही देश चूंकि 1951 रिफ्यूजी कन्वेशन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल के पक्षकार नहीं हैं, इसलिए ये रोहिंग्याओं को शरणार्थी नहीं मानते हैं।

इसके अलावा, पूरी स्थिति  को अनुकूल बनाने के लिए कुछ और भी ऐसे घटक या कारक हैं, जिन पर ध्यान देने की ज़रूरत है।

प्रथम इस प्रकार की क्षमता विकसित करने की ज़रूरत है, जिससे दोनों देशों की सीमा सुरक्षा एजेंसियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को पीड़ितों की पहचान, एजेंसी रेफरल और प्रत्यावर्तन प्रक्रियाओं के बारे में ज़ागरूकता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा सके।

दूसरा, भारत और बांग्लादेश के “ज्वाइंट टॉस्क फोर्स” यानी संयुक्त कार्य बल की बैठकों को नियमित तौर आयोजित करने और उनकी संख्या को बढ़ाने की आवश्यकता है।

तीसरा, कार्यक्रमों के निर्बाध संचालन और पूरी प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के लिए धन की आवश्यकता को पूरा करना।

चौथा, मानव तस्करी के इस दुष्चक्र में शामिल सरकारी कर्मचारियों की पहचान करना। इसके साथ ही ग़ैरक़ानूनी वित्तीय सौदों जैसे भ्रष्टाचार पर लगाम के लिए और ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई के लिए एक तंत्र तैयार करना भी महत्वपूर्ण होगा।

पांचवा, पीड़ित की देखभाल और सुरक्षा सबसे महत्त्वपूर्ण है। पीड़ितों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने और उन्हें पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं एवं सुरक्षा उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

अंत में, दोनों देशों के बीच उपरोक्त सभी मुद्दों को संबोधित करने वाले एक एकीकृत एसओपी की भी आवश्यकता है, जो अपेक्षित नतीज़े पाने के लिए बेहद प्रभावी साबित होगा।