सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को ट्रांसजेंडरों के रोजगार के लिए नीति बनाने का निर्देश दिया


चर्चा में क्यों

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए तीन महीने में राष्ट्रीय परिषद के परामर्श से एक नीति तैयार करने का निर्देश दिया है।

प्रमुख बिन्दु

शीर्ष अदालत ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका में यह आदेश पारित किया है।

याचिकाकर्ता को एयर इंडिया के द्वारा कथित तौर पर उसके यौन अभिरुचि के कारण केबिन क्रू की नौकरी से वंचित कर दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि “2020 से लागू ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019, ऐसे लोगों के अधिकारों के विकास के लिहाज से ऐतिहासिक है, लेकिन इसे वास्तव में लागू किया जाना चाहिए।” यह कानून ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों, उनके कल्याण और अन्य जुड़े मामलों की रक्षा के लिए है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कार्मिक प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) और सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय को नीति बनाते समय सभी हितधारकों से परामर्श करने के लिए भी कहा।

मामला

न्यायालय ने जिस याचिकाकर्ता के मामले की सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया है, उसे लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने के कारण केबिन क्रू सदस्य के रूप में नौकरी से एयर इंडिया ने वंचित करार घोषित कर दिया था।

याचिकाकर्ता का जन्म वर्ष 1989 में तमिलनाडु में हुआ था और उसने 2010 में इंजीनियरिंग में स्नातक किया। अप्रैल 2014 में उसने एक महिला बनने के लिए लिंग पुनर्मूल्यांकन सर्जरी करवाई और यह जानकारी राज्य सरकार के राजपत्र में प्रकाशित हुई। इसके बाद याचिकाकर्ता ने एयर इंडिया में केबिन क्रू पद के लिए महिला वर्ग में आवेदन किया, लेकिन टेस्ट में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद उसका चयन नहीं किया गया।

एयर इंडिया के वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन की ओर से पेश वकील ने कहा कि “याचिकाकर्ता को इसलिए खारिज नहीं किया गया क्योंकि वह एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति है, बल्कि इसलिए कि वह अनुसूचित जाति वर्ग में न्यूनतम योग्यता अंक हासिल करने में असमर्थ थी।

अदालत ने एयरलाइन के मानदंडों का अध्ययन किया और उसकी नीतियों को दोषपूर्ण बताया। कोर्ट ने कहा कि “यदि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के पास समान अवसर नही हैं और उसकी उम्मीदवारी को खारिज कर दिया जाता है तो यह संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन है।”

जब अदालत ने एयर इंडिया के वकील से पूछा कि “क्या याचिकाकर्ता के मामले पर विचार किया जा सकता है, तो वकील ने जवाब दिया कि अधिसूचना महिला केबिन क्रू के लिए थी, लेकिन याचिकाकर्ता ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए दूसरी श्रेणी की मांग की।

पीठ ने तब निर्देश दिया कि “2019 अधिनियम के प्रावधानों को सरकार के सभी प्रतिष्ठानों में लागू किया जाना चाहिए और केंद्र को ट्रांसजेंडर के रोजगार के लिए तीन महीने में नीति तैयार करे।”

ट्रांसजेंडर व्‍यक्तियों के (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019

प्रस्‍तावित विधेयक में निम्‍नलिखित प्रावधान किए गए हैं :-

किसी ट्रांसजेंडर व्‍यक्ति के साथ शैक्षणिक संस्‍थानों, रोजगार, स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं आदि में भेदभाव नहीं किया जाएगा।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान को मान्‍यता और उन्हें स्वयं के कथित लिंग की पहचान का अधिकार प्रदान करना।

माता-पिता और परिवार के नजदीकी सदस्‍यों के साथ रहने का अधिकार।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रम बनाने का प्रावधान।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्‍हें सलाह देने, उनकी देख-रेख और मूल्यांकन उपायों के लिए राष्ट्रीय परिषद का प्रावधान।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रकार के बहिष्कार का निषेध व समान अवसरों की व्यवस्था करना।

स्रोत -The Hindu, PIB