भारत में चीतों का पुर्नवास


भारत में आज आठ अफ्रीकी चीते नामीबिया से लाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन 17 सितंबर को पड़ता है। पीएम नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन पर मध्य प्रदेश के प्रवास पर रहेंगे। प्रधानमंत्री अपने जन्मदिन पर अफ्रीका से आ रहे चीतों के दल को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ेंगे।

चीता धरती का सबसे तेज दौड़ने वाला वन्य-प्राणी है और भारत में विलुप्त श्रेणी में आ चुका है। इतिहास इस बात का गवाह है कि भारत में चीतों का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है।

गांधीसागर अभयारण्य के चतुर्भुज नाला एवं रायसेन जिले के खरबई में मिले शैल चित्रों में चीतों के चित्र पाये गये है। माना जाता है कि मध्य भारत के पूर्व महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव द्वारा 1948 में भारत में अंतिम चीते का शिकार किया गया था। 1952 में भारत सरकार ने अधिकारिक तौर पर देश में चीता को विलुप्त घोषित कर दिया।

दुनिया में केवल 7,000 चीते बचे हैं और उनमें से अधिकांश अफ्रीका में पाए जाते हैं। इंटरनेशनल नॉट-फॉर-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन चीता कंजर्वेशन फंड (CCF) का हेडक्वार्टर नामीबिया है और यह संस्था चीतों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है।

भारत ने दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया की सरकारों ने 20 जुलाई, 2022 को चीतों को लाने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर भी किया था। काफ़ी समय के बाद, दोनों देशों की सरकारों ने बड़ी बिल्लियों के पहले अंतर-महाद्वीपीय स्थानान्तरण के लिए एक आधिकारिक ज्ञापन में प्रवेश किया है।

प्रारंभिक योजनाओं के अनुसार, भारत के पास नामीबिया से 8 चीता- 4 नर और 4 मादा प्राप्त करने की अनुमति है, हालांकि आने वाले वास्तविक चीतों की संख्या उनके स्वास्थ्य और टीकाकरण की स्थिति जैसे कई कारकों पर निर्भर करेगी।

अब देश के लिए अगली चुनौती यह तय करना है कि ये जानवर भारत की नई जलवायु परिस्थितियों में जीवित रह सकें और ढल सकें। यह कैसे संभव होगा और भारत इस बड़ी चुनौती  के लिए कितना तैयार है।

चीता को वापस लाने की पहल 2010 में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने की थी। इसके एक दशक के बाद इस मामले में एक बड़ा मोड़ आया।  पहली बार 28 जनवरी, 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को भारत में चीतों को लाने की अनुमति दी थी।   

साथ ही अदालत ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को चीतों के लिए एक उपयुक्त स्थान खोजने का आदेश दिया था।

कई राष्ट्रीय उद्यानों पर विचार करने के बाद  विशेषज्ञों ने पृथ्वी पर सबसे तेज जानवर की देश में वापसी के लिए मध्य प्रदेश के श्योपुर में कुनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान को चुना।

पशु चिकित्सकों को उन्हें संभालना, उनके भोजन की आदतों, उनके शरीर के तापमान की निगरानी करने की तकनीक, बीमार होने की स्थिति में देखभाल के गुर सिखाए गए।

चीतों को अफ्रीका से भारत लाए जाने के बाद उन पर छह से आठ महीने तक कड़ी निगरानी रखी जाएगी।

चीता पुनर्वास को भारत के घास के मैदानों के संरक्षण के साधन के रूप में भी देखा जा रहा है। ये घास के मैदान कई अन्य प्रजातियों के घर हैं और इसमें  गंभीर रूप से लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लुप्तप्राय भारतीय भेड़िया सहित कई जीव रहते हैं। विशेषज्ञ सवाल उठाते हैं कि क्या घास के मैदान को बचाने के लिए इतने महंगे निवेश की जरूरत थी।

भारत में कुछ संरक्षणवादियों को योजना की सफलता पर संदेह है और उन्हें डर है कि यह अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण से ध्यान भटकाएगा, जैसे कि एशियाई शेर, जिसे 2013 में शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार कुनो में स्थानांतरित किया जाना था लेकिन अब वह मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

वन्यजीव जीवविज्ञानियों का मत है कि चूंकि एशियाई और अफ्रीकी चीतों के बीच काफ़ी अंतर हैं, इसलिए यह देखा जाना बाकी है कि अफ्रीकी चीते भारतीय जलवायु और चुनौतियों के अनुकूल हो पाते हैं या नहीं ।

ध्रुव कुमार