एक देश, एक चुनाव


“इससे चुनाव पर होने वाला खर्च आधे से भी कम हो जाएगा, मगर इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 83, अनुच्छेद 85, अनुच्छेद 172 और अनुच्छेद 174 मे संशोधन करना होगा। इससे भी बड़ी चुनौती राजनीतिक दलों में सर्वसम्मति बनाने की है।”

उपर्युक्त बातें ‘एक देश, एक चुनाव’ के संबंध में प्रसिद्ध संविधानविद सुभाष कश्यप ने कही है। यूँ तो भारत मे एक देश, एक चुनाव की अवधारणा पहले आम चुनाव 1952 से ही अनुसरित की जा रही है किंतु 1967 मे जब विभिन्न राज्यों की विधानसभाओ को समय पूर्व ही भंग कर दिया गया था तो लोकसभा और राज्यों के चुनाव अलग-अलग समय होने लगे थे जो आज भी हो रहे है।

आब लगातार वर्तमान केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस संबंध में अपनी राय जाहिर करते है कि लोकसभा चुनाव और विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ होने चाहिए।

एक देश, एक चुनाव की जरूरत क्यों?

भारत देश में लोकसभा के चुनाव के अलावा 29 राज्य और दो केंद्रशासित प्रदेशों में भी विधानसभा के चुनाव होते है। ऐसे में हमारा देश लगातार चुनावी मोड में बना रहता है। इससे देश की सरकारी मशीनरी तो इन चुनावों में व्यस्त रहती है। इसके अलावा सुरक्षा कार्मिक जैसे अर्द्धसैनिक बल , विभिन्न राज्यों के पुलिस बल और विभिन्न सरकारी अध्यापक भी इनमें व्यस्त रहते है। इससे इनकी उत्पादकता तो प्रभावित होती ही है, केंद्र और राज्य की आर्थिक गतिविधियों पर भी असर होता है।

एक अनुमान के मुताबिक 17 वीं लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रूपए का खर्च हुआ। इस हिसाब से एक मत का मूल्य लगभग 700 रूपये बैठता है। इतने खर्चीले चुनाव देश की आर्थिक रफ्तार को तो मंद करते ही है इसके साथ ही इससे अन्य उद्योग-धंधे भी प्रभावित होते है।

राजनीतिक दल राज्यों के चुनाव को देखते हुए कठिन फैसले लेने से डरते है कि कही इसका असर उनके दल के चुनावी परिणामों पर न पड़े।

वर्ष 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170 वीं रिपोर्ट में भी एक देश एक चुनाव का समर्थन किया था। हालांकि ये इतना आसान न है क्योंकि इसके लिए संसद से तो विशेष बहुमत के साथ संकल्प पारित कराना जरूरी है ही, इसके साथ ही आधे से अधिक राज्यों से भी इसे पारित कराना जरूरी है।

इसके अतिरिक्त लोकसभा और राज्यों के विधानसभा के चुनावों को एक साथ समन्वित कराना भी आवश्यक है। इसके अलावा यह सहकारी संघवाद का भी मुद्दा है क्योंकि केंद्र और राज्यों के अलग-अलग मुद्दे होते है। इससे मतदाताओं को असमंजस की स्थिति का सामना भी करना पड़ता है।

यदि इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इस सुधार की दिशा में आगे बढ़ा जाएं तो निश्चित रूप ई एक देश, एक चुनाव की दिशा में दूरगामी परिणामो की प्राप्ति होगी।