न्यूज़ चैनल, हेट स्पीच की सबसे बड़ी वजह’: सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को टीवी न्यूज़ चैनल पर होने वाली डिबेट को हेट स्पीच फैलाने का सबसे बड़ा कारण बतायाहै।

सर्वोच्च न्यायालय ने टीवी चैनलों की बहस की सामग्री पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि ‘सरकार मूकदर्शन बन कर ये सब देख रही है’ और इस मामले को ‘बहुत कम’ आंक रही है।

जस्टिस केएम जोसफ़ और ऋषिकेश राय की बेंच ने टीवी डिबेट को रेगुलेट करने को लेकर दिशानिर्देश तैयार करने की मंशा ज़ाहिर की और केंद्र सरकार से पूछा कि “क्या वह इस मामले पर कोई क़ानून लेकर आना चाहती है”?

बेंच ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ‘नफ़रत से टीआरपी आती है और टीआरपी से मुनाफ़ा आता है। साथ ही कहा कि वह इसे लेकर एक गाइडलाइन जारी करना चाहते हैं जो तब तक इस्तेमाल में लाई जाए जब तक सरकार इस बारे में क़ानून नही बनाती है।

लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने टीवी चैनलों को उनके कार्यक्रमों के कारण इस तरह फटकार लगाई है और इनके रेगुलेशन की बात की है।

मेनस्ट्रीम मीडिया को सबसे बड़ा ख़तरा स्वयं से है

केंद्रीय प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने मेनस्ट्रीम मीडिया चैनलों को मीडिया के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताया है।

दिल्ली में एशिया-पैसिफ़िक इंस्टीट्यूट फ़ॉर ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट के इवेंट के दौरान अनुराग ठाकुर ने कहा, ”सच्ची पत्रकारिता तथ्य और सच दिखाना है, हर पक्ष को अपनी राय रखने का मौका देना है। मेरी निजी राय है कि मेनस्ट्रीम मीडिया चैनल को सबसे बड़ा ख़तरा न्यू-एज डिजिटल मीडिया से नहीं बल्कि ख़ुद से ही है। अगर आप अपने चैनल पर ऐसे मेहमानों को बुलाते हैं जो बांटने वाली बातें करते हैं, झूठे नैरेटिव फैलाते हैं और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हैं तो आप अपने चैनल की विश्वसनीयता ख़ुद घटाते हैं।”

साल 2020 में जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच जब सुदर्शन न्यूज़ के मामले में सुनवाई कर रही थी तो केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि केंद्र सरकार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए नियमों पर व्यापक रूप से काम कर रही है।

सरकार कैसे चैनलों को नियंत्रित करती है ?

टीवी चैनलों पर प्रसारित की जाने वाली सामग्री को केबल टेलीविज़न नेटवर्क नियम-1994 के तहत नियंत्रित किया जाता है।

इसमें कहा गया है कि “केबल सर्विस कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं चला सकती जिसमें किसी धर्म या समुदाय के ख़िलाफ़ कोई बात कही जाए या फिर किसी भी तरह से ये सांप्रदायिकता का भाव रखता हो।”

इन नियमों में ये भी कहा गया है कि कार्यक्रमों में किसी भी तरह से ‘आधा सच’ ना दिखाया जाय।

केबल टेलीविज़न नेटवर्क नियम के तहत केंद्र सरकार ये तय करती है कि किसे न्यूज़ चैनल चलाने की इजाज़त होगी और किस तरह की सामग्री ब्रॉडकास्ट की जाएगी।

हर चैनल को ऑन-एयर होने से पहले केंद्र सरकार के पास रजिस्टर करवाना होता है। साल 2011 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने टेलीविज़न चैनल की अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग के लिए दिशानिर्देश जारी किए।

साल 2011 के दिशानिर्देशों के मुताबिक़ चैनल शुरू करने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को एक आवेदन देना होता है। इसके बाद मंत्रालय भारतीय दर्शकों के लिए चैनल कितना उचित है, इस पर विचार करता है और फ़ैसला लेता है। इसके बाद इसे गृह मंत्रालय के पास सिक्योरिटी से जुड़े क्लीयरेंस के लिए भेजा जाता है।

हर चैनल का रजिस्ट्रेशन 10 साल के लिए होता है जो रिन्यू होता रहता है। हर 10 साल पर कंपनियों के रजिस्ट्रेशन के लिए फिर आवेदन भरना पड़ता है। हर चैनल को केबल टेलीविज़न (रेगुलेशन) ऐक्ट के तहत प्रसारित की जाने वाली सामग्री के लिए तय नियमों का पालन करना होता है।

अगर केंद्र सरकार चाहे तो जनहित को ध्यान में रखते हुए वह किसी चैनल का लाइसेंस कुछ वक्त के लिए रद्द कर सकती है।

एनबीए और एनबीएसए की निष्क्रियता

साल 2007 में मुख्य न्यूज़ चैनलों ने मिलकर “न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग असोसिएशन” यानी एनबीए का गठन किया ताकि चैनलों की नैतिकता और परिचालन के मामलों से निपटा जा सके।

हालांकि इन नियमों को कई टीवी चैनलों ने पहले ही ताख पर रख दिया है।इसके बाद न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी यानी एनबीएसए को स्थापित किया गया और जस्टिस जे एस वर्मा को इसका चेयरमैन बनाया गया।

इस बात पर रज़ामंदी हुई कि ये एक स्वतंत्र संस्था होगी जिसमें एनबीए का कोई दखल नहीं होगा। एनबीएसए में भारतीय मीडिया के चार संपादक होते हैं जो इस इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व करते हैं।

लेकिन एनबीएसए का प्रभाव इंडस्ट्री पर कुछ ख़ास नहीं रहा क्योंकि कई न्यूज़ चैनलों ने इसके सुझावों का पालन नहीं किया।

कोर्ट ने क्या कहा

हेट स्पीच के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “इस मामले में सरकार मूकदर्शक क्यों बनी हुई है? इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने टीवी चैनल के एंकरों की भूमिका को भी अहम बताया है।”

भारत में न्यूज़ चैनलों पर होने वाली बहस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराज़गी ज़ाहिर की है।

हेट स्पीच के मामले में एक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा है कि ऐसी बहसों में अक्सर हेट स्पीच को जगह दी जाती है।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के सवाल पूछा है कि वो ऐसे हेट स्पीच को लेकर मूकदर्शक क्यों बनी रही है?

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज से कई सवाल पूछे हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा है, “आख़िर इसमें समस्या क्या है? भारत सरकार इस मामले में कोई स्टैंड क्यों नहीं ले रही है? सरकार क्यों ऐसे मामलों को लेकर मूकदर्शक बनी हुई है?”

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि केंद्र को इस मामले में कोर्ट के विरोध में खड़ा नहीं होना चाहिए, बल्कि मदद करनी चाहिए।

लेखक : ध्रुव कुमार