हिजाब विवाद में नया मोड़


सुप्रीम कोर्ट में हिजाब विवाद पर सुनवाई कर रही दो जजों की बेंच ने अब इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने की सिफ़ारिश की है।

जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धुलिया ने इस मामले पर बंटा हुआ फ़ैसला दिया है। अंतिम निर्णय पर एकमत न होने के कारण उन्होंने ये केस चीफ़ जस्टिस यूयू ललित के पास भेजा है जो अब इस पर सुनवाई के लिए बड़ी बेंच का गठन करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का मतलब है कि जब तक सर्वोच्च न्यायालय अपना फ़ैसला नहीं सुनाती, कर्नाटक हाई कोर्ट का फ़ैसला मान्य रहेगा। अर्थात जब तक सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच इस पर निर्णय नहीं करती, तब तक स्कूल-कॉलेज में हिजाब न पहनने की यथास्थिति बनी रहेगी।

जस्टिस गुप्ता ने छात्रों की याचिकाओं को ख़ारिज किया और कर्नाटक हाईकोर्ट के फ़ैसले को सही ठहराते हुए कहा, ” ये मामला हम चीफ़ जस्टिस को भेज रहे हैं ताकि इसकी सुनवाई के लिए बड़ी बेंच का गठन किया जाए।”

लेकिन बेंच के दूसरे जज जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फ़ैसले को खारिज करते हुए कहा, “हिजाब पहनना व्यक्तिगत पसंद का मुद्दा है। मेरे दिमाग में सबसे ज़्यादा ये बात आ रही है कि क्या हम इस तरह के प्रतिबंध लगाकर एक छात्रा के जीवन को बेहतर बना रहे हैं?”

जस्टिस हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली बेंच ने 26 सितंबर को सभी पक्षों यानी 23 याचिकाकर्ताओं के वकीलों और कर्नाटक सरकार की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया था कि उसके पास शैक्षणिक संस्थानों के लिए स्कूल यूनिफॉर्म तय करने और अनुशासन का पालन करने का आदेश जारी करने का अधिकार है।

कर्नाटक हाईकोर्ट की चीफ़ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा दीक्षित और जस्टिस जे एम खाजी की बेंच ने इस साल 15 मार्च को अपने फ़ैसले में कहा था कि महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम में अनिवार्य प्रथा नहीं है।
इसलिए ये संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक मान्यताओं को मानने की आज़ादी) के अंतर्गत नहीं आता है।

कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में ये भी कहा था कि स्कूल की यूनिफॉर्म एक उचित व्यवस्था है जो संविधान सम्मत है। इस पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते हैं। साथ ही राज्य सरकार के पास ऐसी अधिसूचना जारी करने की शक्ति है और सरकारी अधिसूचना के ख़िलाफ़ कोई मामला नहीं बनता।

अब तक क्या हुआ …

हिजाब-ए-इख़्तियारी यानी एक महिला की हिजाब को चुनने की पसंद।कर्नाटक से लेकर ईरान तक हर तरफ़ ये नारा सुनाई दे रहा है। ईरान में हज़ारों महिलाएं उस क़ानून के ख़िलाफ़ सड़कों पर हैं जो उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना अनिवार्य करता है।

वहीं भारत के कर्नाटक प्रांत में कॉलेज छात्राएं हिजाब पहनने के अधिकार की मांग कर रही हैं।

ये दोनों ही विचार एक दूसरे के विरोधी प्रतीत हो सकते हैं लेकिन इनका तर्क एक ही है- एक महिला के पास ये अधिकार होना चाहिए कि वो तय कर सके कि उसे क्या पहनना है और क्या नहीं पहनना है।

भारत में सुप्रीम हिजाब विवाद पर फ़ैसला करेगा। ये फ़ैसला तय करेगा कि कर्नाटक में कॉलेज और स्कूल जाने वाली छात्राएं कैंपस के अंदर हिजाब पहन पाएंगी या नहीं।

01 जुलाई 2021 को गवर्नमेंट पीयू कॉलेज फॉर गर्ल्स ने तय किया था कि किस तरह की पोशाक को कॉलेज यूनिफॉर्म स्वीकार किया जाएगा और कहा था कि छात्राओं के लिए दिशानिर्देशों का पालन करना अनिवार्य है।

जब कोविड लॉकडाउन के बाद स्कूल फिर से खुला तो कुछ छात्राओं को पता चला कि उनकी सीनियर छात्राएं हिजाब पहनकर आया करती थीं। इन छात्राओं ने इस आधार पर कॉलेज प्रशासन से हिजाब पहनने की अनुमति मांगी।

उडुपी ज़िले में सरकारी जूनियर कॉलेजों की पोशाक को कॉलेज डेवलपमेंट समिति तय करती है और स्थानीय विधायक इसके प्रमुख होते हैं।

नए दिशानिर्देशों के तहत मुसलमान छात्राओं के हिजाब पहनने पर रोक लगा दी गई थी। दिसंबर 2021 में छात्राओं ने हिजाब पहनकर कैंपस में घुसने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें बाहर ही रोक दिया गया था।

इन लड़कियों ने इसके बाद कॉलेज प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू कर दिया था और जनवरी 2022 में उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ याचिका दायर कर दी थी।

प्रदर्शन, नारेबाज़ी और हिंसा

ये मामला शुरू तो उडुपी ज़िले से हुआ था लेकिन जल्द ही जंगल की आग की तरह बाक़ी ज़िलों में भी फैल गया।शिवमोगा और बेलगावी ज़िलों में भी हिजाब पहनकर कॉलेज आने वाली मुसलमान छात्राओं पर रोक लगा दी गई।

हालांकि कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई शुरू होने के तीन दिन पहले मुख्यमंत्री बसावराज बोम्मई की सरकार ने एक आदेश जारी करके सभी छात्रों के लिए कॉलेज प्रशासन की तरफ़ से तय यूनीफॉर्म को पहनना अनिवार्य कर दिया।

इस आदेश में ये भी कहा गया कि तय पोशाक के अलावा कुछ और पहनने की अनुमति नहीं होगी। आदेश में कहा गया कि सरकारी कॉलेजों में कॉलेज की विकास समिति के पास यूनीफॉर्म तय करने को लेकर पूर्ण अधिकार होगा।

आदेश में ये भी कहा गया कि “निजी शिक्षा संस्थान ये तय कर सकते हैं कि छात्राओं से यूनीफॉर्म पहनने के लिए कहा जाए या नहीं। इस आदेश के दो दिनों के भीतर ही प्रदर्शन राज्य भर में फैल गए और कई जगह हिंसक घटनाएं भी हुईं।

इसके बाद कर्नाटक के कई इलाक़ों में हिंसक झड़पें हुईं। पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस छोड़नी पड़ी।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री को एहतियात के तौर पर कई दिनों तक सभी स्कूलों को बंद रखने का आदेश देना पड़ा। इसके बाद मामला कर्नाटक हाई कोर्ट की तीन जजों की बैंच में पहुंचा।

हाई कोर्ट का फ़ैसला

अदालत ने पाँच फ़रवरी को जारी राज्य सरकार के आदेश को बरक़रार रखा। इस आदेश के तहत उन स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पर रोक लगाई जा सकती थी जहां यूनीफॉर्म पहले से ही तय थी।

अदालत ने कहा कि ‘स्कूल यूनीफॉर्म तय करना उचित प्रतिबंध है जो संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है।’

मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण दीक्षित, जस्टिस जेएम काज़ी की पीठ ने ये कहते हुए याचिका ख़ारिज कर दी कि, “ये तर्क नहीं दिया जा सकता है कि हिजाब पोशाक का हिस्सा होने की वजह से इस्लाम की आस्था के मूल में है। ऐसा नहीं है कि हिजाब पहनने की कथित प्रथा का अगर पालन न किया जाए तो, जो लोग हिजाब नहीं पहन रहे हैं वो ग़ुनाहगार हो जाएंगे या इस्लाम अपनी चमक खो देगा और धर्म नहीं रहेगा।”

अब हिजाब विवाद पर फ़ैसला करेगा सुप्रीम कोर्ट

हाई कोर्ट के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और तुरंत अपील दायर कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट न अपनी सुनवाई पूरी कर फ़ैसला सुरक्षित कर लिया था।

और अब दो न्यायाधीशों की बेंच ने इसे बड़ी बेंच में भेजने का निर्णय लिया है।

ईरान से तुलना

भारत में हिजाब को लेकर सुर्ख़ियां बन ही रहीं थीं कि उधर ईरान में महिलाओं ने हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू कर दिया।

22 वर्षीय कुर्द युवती महसा अमीनी की नैतिक पुलिस की हिरासत में मौत की घटना के बाद से ही समूचे ईरान में हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं।

महसा अमीनी ईरान के सख़्त नियमों का उल्लंघन करते हुए बिना हिजाब के थीं। उनके परिवार का आरोप है कि उनकी मौत पुलिस की पिटाई की वजह से हुई है लेकिन पुलिस का कहना है कि मौत की वजह हार्ट अटैक थी।

ईरान में महिलाएं इस समय देशभर में हिजाब और दूसरे मुद्दों के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट कर रही हैं। इंटरनेट पर शेयर किए जा रहे वीडियों में ईरानी महिलाएं हिजाब उतारती और अपने बाल काटती दिख रही हैं।