कुदरती कप्तान धोनी जिनके हिस्से ढेरों उपलब्धियां और कुछ विवाद है


एक से बढ़कर एक सितारों से सजी भारतीय क्रिकेट टीम साल 2007 क्रिकेट विश्वकप के शुरूआती चरण से बाहर हो चुकी थी। भारतीय क्रिकेट टीम की इस निराशाजनक प्रदर्शन से पूरा देश गुस्से में था। बीसीसीआई के लिए भी ये बेहद कठिन परिस्थितियां थी। इसी साल टी ट्वेंटी क्रिकेट का पहला विश्वकप भी होना था। इन हालातों में चयनकर्ताओं के लिए न सिर्फ टीम को चुनना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था बल्कि टीम का कप्तान चुनना इससे भी ज्यादा मुश्किल निर्णय था।

खैर! टीम और टीम के कप्तान का चुनाव कर लिया जाता है। अपना पहला टी ट्वेंटी विश्वकप खेलने जा रही भारतीय टीम के कप्तान बनते है महेंद्र सिंह धोनी। वो धोनी जिन्होंने 3 साल पहले ही अपना अंतरराष्ट्रीय डेब्यू किया और अपनी धुंआधार पारियों और शास्त्रीय विकेटकीपिंग की वजह से टीम में एक खासा मुकाम बना लिया।

धोनी चयनकर्ताओं के इस भरोसे पर खरे भी उतरते है। भारतीय टीम अपने शानदार खेल के दम पर फाइनल में पहुँच जाती है। फाइनल में भारत का सामना पाकिस्तान से होना है। मैच का आखिरी ओवर होने को है और धोनी सबको चौंकाते हुए गेंद जोगिंदर शर्मा को थमा देते है। जोगिंदर शर्मा इस मैच में अब तक महंगे गेंदबाज साबित हुए है। खैर ओवर शुरू होता है और इसी ओवर की एक गेंद पर पाकिस्तानी कप्तान मिस्बाह उल हक एक स्कूप शॉट खेलते है और श्रीसंत उनका कैच लपक लेते है। इस तरह भारत उद्घाटन टी ट्वेंटी विश्वकप को जीत लेता है।

टी ट्वेंटी विश्वकप जीतकर धोनी ने इतिहास रच दिया था। अब उनका अगला लक्ष्य था- टीम को एकदिवसीय क्रिकेट में बादशाह बनाना। साल 2008 में उनकी सदारत में टीम त्रिकोणीय सीरीज खेलने ऑस्ट्रेलिया पहुँचती है। भारत-ऑस्ट्रेलिया-श्रीलंका के बीच खेली गई इस सीरीज को टीम इंडिया जीतती है। इस तरह धोनी उस ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम को हराने में कामयाब हो जाते है जिसने भारत को कई मैचों में इकतरफा मात दी है।

साल 2011 में क्रिकेट विश्वकप होना था और ये क्रिकेट विश्वकप भारत की ही सरजमीं पर होना था। क्रिकेट प्रेमी ये आस लगाएं बैठे थे कि भारत 28 साल बाद फिर से विश्वविजेता बनेगी। इस मुकाबले में भारत दर्शकों की सभी उम्मीदों पर खरा भी उतरती है। एक के बाद एक मुकाबले में वो अपने प्रतिद्वंद्वियों ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान को मात देते हुए फाइनल में पहुँचती है। फाइनल में उसका मुकाबला श्रीलंका से होना था। श्रीलंका पहली पारी में खेलने उतरी और महेला जयवर्धने के शतक की मदद से बेहतरीन लक्ष्य दिया। मगर भारत ने गौतम गंभीर और विराट कोहकी की शानदार पारी के दम पर ये मचज जीत लिया। इस तरह भारत 28 साल बाद एक बार फिर से विश्वकप विजेता बन जाता है।

भारत न सिर्फ वनडे और टी ट्वेंटी में अच्छा कर रही थी बल्कि टेस्ट में भी भारत एक के बाद एक दिग्गज टीमों को हराती जा रही थी। अपने इसी प्रदर्शन के बलबूते भारत टेस्ट क्रिकेट की नम्बर एक टीम बन जाती है और धोनी भारत के सफलतम टेस्ट क्रिकेट कप्तानों में से एक बन जाते है।

साल 2013 में इंग्लैंड में चैंपियंस ट्रॉफी होनी थी। इस टूर्नामेंट में भारत शानदार प्रदर्शन करते हुए फाइनल में पहुँचती है। फाइनल में उसका मुकाबला मेजबान इंग्लैंड से होता है। इसी मैच में बारिश हो जाती है। बारिश के कारण मैच घटकर 20 ओवर का हो जाता है। धोनी की टीम पहले बल्लेबाजी करती है और महज 129 रन का लक्ष्य इंग्लिश टीम को मिलता है। मगर धोनी अपने कुशल प्रबंधन के दम पर इंग्लिश टीम को 129 रनों के लक्ष्य भी न प्राप्त करने देते है। इस तरह भारतीय क्रिकेट टीम चैंपियंस ट्रॉफी भी जीत जाती है।

धोनी न सिर्फ भारतीय टीम के लिए अच्छा खेल रहे थे बल्कि वो आईपीएल में अपनी टीम चेन्नई सुपरकिंग्स के लिए भी शानदार योगदान दे रहे थे। उनकी सदारत में चेन्नई सुपरकिंग्स ने 4 बार इस आईपीएल जीता।

धोनी की इस शानदार सफलता की वजहें उनके कुछ शानदार गुण थे-

(1)संयम- यह गुण धोनी में कूट-कूट कर भरा हुआ था।विषम से विषम परिस्थितियों में भी धोनी अपने धैर्य से न डिगते थे। इसकी बानगी आप इस बात से भी समझ सकते है कि धोनी ने अपने नायब विराट कोहली की कप्तानी में न सिर्फ खेला बल्कि अपमे सदर कोहली की निर्णय लेने में तमाम समय मदद की। यही कारण था कि कोहली डेथ ओवरों में 30 गज के बाहर आराम से खड़े हो पाते थे और धोनी इधर सारा प्रबंधन संभाल लेते थे। विपरीत परिस्थितियों में संयम के साथ खड़े रहने के गुण के कारण ही इन्हें कैप्टन कूल भी कहा जाता था।

(2)कुशल प्रबंधन- धोनी न सिर्फ कुशल कप्तान थे बल्कि एक शानदार टीम प्रबंधक भी थे। यही कारण है कि उनकी सदारत में टीम में स्थापित हुए एक खिलाड़ी एक माला की भांति हमेशा गुंथे रहे। हालांकि कुछ एक सीनियर खिलाड़ी इस दलगत जुड़ाव के अपवाद भी रहे। इनमें सहवाग, युवराज और हरभजन प्रमुख है।

(3)कभी हार न मानने का एटीट्यूड- भारतीय टीम पहली पारी में कितना भी कम स्कोर क्यों न बनाएं मगर विराट की देहबोली इससे कभी प्रभावित न होती थी। अव्वल तो वो हमेशा ही जोश-ओ-खरोश से लबरेज रहते थे। विकेट कब पीछे से ही वो खड़े-खड़े गेंदबाजों को बता देते थे कि बॉल इस दिशा में डाल या उधर डाल… और उनके ये आकलन ज्यादातर सटीक ही साबित होते थे।

धोनी के खेल और व्यक्तित्व में अगर कुछ शानदार बातें थी तो उनकी जिंदगी में कुछ विवाद भी थे जिनके बारे में बात किये बगैर उनका निष्पक्ष मूल्यांकन न किया जा सकता है। साल 2008 में जब धोनी ने ऑस्ट्रेलिया को उसी की धरती पर त्रिकोणीय मुकाबले में हराया तो धोनी ने भारत आकर इस जीत के उपलक्ष्य में झारखंड के एक मंदिर में बकरे की बलि चढ़ाई। इसके बाद जब उनका देश भर में विरोध हुआ तो उन्होंने कभी भी ऐसा न दोहराने का कौल जनता को दिया।

इसी सीरीज में धोनी के विकेट कीपिंग ग्लब्स पर भी सवाल उठाएं गए। आईसीसी ने उन्हें दुबारा ऐसा कभी न करने की चेतावनी दी और ये भी तस्दीक किया कि आइंदा से क्रिकेटीय नियमों के प्रतिकूल ग्लब्स न पहनें। साल 2013 में राजस्थान रॉयल्स और चेन्नई सुपर किंग्स के बीच हुए मैच के फिक्स होने का विवाद सामने आया। इस मामले के जांच अधिकारी जी संपत कुमार से एक सटोरिये ने बताया कि उन्हें चेन्नई सुपरकिंग्स से जुड़े गुरूनाथ मयपन्न ने ये कहा था कि धोनी मैच फिक्सिंग के लिए तैयार है।

ये खुलासा जस्टिस मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट में सामने आया था। हालांकि इस सम्बंध में पुलिसिया बयानों के अलावा कोई ठोस सुबूत न था, फिर भी धोनी के ऊपर इस विवाद की आंच तो आई ही थी। धोनी जिस चेन्नई सुपरकिंग्स के लिए खेलते थे, उसकी प्रायोजक कंपनी इंडिया सीमेंट में वो एक अधिकारी भी थे। इसके अलावा धोनी और इंडिया सीमेंट के मालिक व बीसीसीआई-आईसीसी के चैयरमैन रह चुके एन. श्रीनिवासन से भी खासी नजदीकियां थी। ये हितों के टकराव का साफ-साफ मामला भी बनता है क्योंकि कई बार ये आरोप लगाया गया कि श्रीनिवासन ने टीम में बने रहने में धोनी की मदद भी की।

संकर्षण शुक्ला