राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग स्थापना दिवस


चर्चा में क्यों ?


हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपना 30वां स्थापना दिवस समारोह मनाया, आइये जानते है राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के बारे में


मुख्य बिंदु :-


नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 30वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने समाज के वंचित और कमजोर वर्गों के मानवाधिकारों की सुरक्षा के काम के लिए एनएचआरसी की सराहना की।


उन्होंने मीडिया से आग्रह किया कि वे आयोग की सलाह को सार्वजनिक रूप से प्रमुखता से उजागर करे क्योंकि इससे “देश में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने” में बहुत मदद मिलेगी।


मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए समावेशी विकास को महत्वपूर्ण बताते हुए, श्री धनखड़ ने विभिन्न शासन व्यवस्थागत सुधारों और सकारात्मक पहलों की, विशेष रूप से हाल के वर्षों में स्वास्थ्य और आर्थिक क्षेत्रों में, सराहना की जिन्होंने मानव अधिकारों को और मजबूती दी है।


उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने जोर देकर कहा कि लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए मानवाधिकार सर्वोत्कृष्ट हैं तथा उन्होंने प्रत्येक नागरिक से दूसरों के मानवाधिकारों के संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए काम करने का आग्रह किया क्योंकि “यह उनके अपने मानवाधिकारों के संरक्षण की सबसे सुरक्षित गारंटी है।”


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के बारे में


भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एक स्वायत्त विधिक संस्था है। इसकी स्थापना 12 अक्टूबर 1993 को हुई थी।


इसकी स्थापना मानवाधिकार सरक्षण अधिनियम, 1993 के अन्तर्गत की गयी।


राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन पेरिस सिद्धान्तों के अनुरूप है जिन्हें अक्तूबर, 1991 में पेरिस में मानव अधिकार संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए राष्ट्रीय संस्थानों पर आयोजित पहली अन्तरराष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किया गया था तथा 20 दिसम्बर, 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संकल्प 48/134 के रूप में समर्थित किया गया था।


यह आयोग देश में मानवाधिकारों का प्रहरी है। यह सविंधान द्वारा अभिनिश्चित तथा अन्तरराष्ट्रीय सन्धियों में निर्मित व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षक है।


संरचना –


यह एक बहु सदस्यीय निकाय है। एक व्यक्ति जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो, वह अध्यक्ष होता है।


इसके अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष या 70 वर्ष (जो भी पहले पूर्ण हो जाए)।


इसके अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक गठित समिति की सिफारिश पर होती है।


कार्य व शक्तियाँ


यह मानवाधिकार के उल्लंघन के संबंध में याचिका प्राप्त करने के उपरांत या स्वतः संज्ञान के आधार पर अन्वेषण करता है ।


मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों पर सरकार को परामर्श देना। यह परामर्श दात्री निकाय है इसलिए दण्ड देने का अधिकार नहीं है।


यह किसी मामले को उसके घटित होने के एक वर्ष के भीतर देख सकता है, अर्थात् आयोग को मानवाधिकारों का उल्लंघन किये जाने की तारीख से एक वर्ष की समाप्ति के बाद किसी भी मामले की जाँच करने का अधिकार नहीं है।


1 वर्ष से अधिक पुराने मामलों को सरकार की सहमति से सुनवाई कर सकता है
इसे लोक न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।


यह मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जाँच के उद्देश्य से केंद्र सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या जाँच एजेंसी की सेवाओं का उपयोग करने के लिये अधिकृत है।


यह अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है।


Source – PIB