विदेशी संपत्ति मामलों की जांच हेतु मल्टी-एजेंसी समूह


चर्चा में क्यों ?

हाल ही में केंद्र सरकार ने विदेशी संपत्ति मामलों की त्वरित और समन्वित जांच के लिए मल्टी-एजेंसी समूह गठित किया।

मुख्य बिंदु :-

  • केंद्र सरकार ने विभिन्न प्रवर्तन एजेंसियों और संगठनों के प्रतिनिधियों वाला एक मल्टी-एजेंसी समूह गठित किया है, जो पनामा पेपर लीक, पैराडाइज पेपर लीक और हालिया पेंडोरा पेपर लीक जैसे विभिन्न श्रेणियों के विदेशी संपत्ति मामलों की त्वरित और समन्वित जांच करेगा।
  • लोकसभा को ये जानकारी देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा कि स्विस बैंकों में भारतीय नागरिकों और कंपनियों द्वारा जमा की गई राशि का कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है।
  • हालांकि, एक लिखित बयान में वित्त मंत्री ने कहा कि कुछ हालिया मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि 2020 की तुलना में 2021 में स्विस बैंकों में भारतीयों का धन बढ़ा है। उन्होंने कहा कि इन मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि इस जमा राशि में स्विट्जरलैंड में भारतीयों के पास कथित काले धन की मात्रा का कोई संकेत नहीं है।
  • वित्त मंत्री ने कहा कि हाल के दिनों में अघोषित विदेशी संपत्ति और आय पर, कर लगाने के लिए सरकार द्वारा कई ठोस और सक्रिय कदम उठाए गए हैं। उन्होंने कहा कि इस वर्ष 31 मई तक एचएसबीसी मामलों में असूचित विदेशी बैंक खातों में जमा राशि के कारण, अब तक 8468 करोड़ रुपये से अधिक की अघोषित आय पर कर वसूला गया है और 1294 करोड़ रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया गया है।
  • सुश्री सीतारामन ने कहा कि इस साल 31 मई तक काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) और कर अधिनियम, 2015 के तहत, 368 मामलों में आकलन पूरा हो चुका है, जिससे 14820 करोड़ रुपये से अधिक कर की मांग सामने आई है।
  • उन्होंने यह भी बताया कि एकमुश्त अनुपालन खिड़की की 30 सितम्बर 2015 को समाप्त तीन महीने की अवधि के दौरान काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) और कर अधिनियम, 2015 के तहत 4164 करोड़ रुपये की अघोषित विदेशी संपत्ति से जुड़े 648 खुलासे किए गए। इन मामलों में कर और जुर्माने के रूप में एकत्र की गई राशि लगभग 2476 करोड़ रुपये थी।

क्या होता है काला धन ?

  • अवैध तरीकों से अर्जित किया गया धन काला धन या ब्लैक मनी ( Black Money ) कहलाता है। कर योग्य वह धन जिस पर कर न दिया गया हो वह भी काले धन की श्रेणी में आता है।
  • काला धन कई तरीकों से उत्पन्न होता है। इनमें मुख्यत: दो तरीके आते हैं, आपराधिक गतिविधियां और आय छुपाकर। पहले बात करते हैं आपराधित गतिविधियों की। इसमें अवैध साधनों-संसाधनों का इस्तेमाल कर जुटाई गई राशि काला धन कहलाती है। इसमें अपहरण, तस्करी, नशीली दवाएं, अवेध खनन, जालसाजी और घोटाले मुख्य रूप से आते हैं। इसके अलावा भ्रष्टाचार जैसे रिश्वतखोरी और चोरी भी काले धन का प्रमुख स्त्रोत है।
  • काले धन की उत्पत्ति का दूसरा स्त्रोत है कर बचाने के लिए आय की जानकारी विभाग को नहीं देना। जैसे कि यदि किसी व्यक्ति की वार्षिक आय आयकर के अंतर्गत है तो वह आयकर की राशि को बचाने के लिए अपनी वास्तविक आय के स्थान पर कम आय को दर्शाता है। यह अंतर (वास्तविक आय और घोषित आय के बीच अंतर) काला धन कहलाता है। देश में काले धन के पैदा होने की सबसे बड़ा कारण यही है।

काले धन का अनुमान-

  • काले धन का पता लगाने का एक तरीका निवेश-उत्पाद अनुपात (इनपुट-आउटपुट रेशियो) है। उदाहरण के लिए किसी देश में एक राशि के निवेश (इनपुट) पर एक विशेष मात्रा में उत्पादन (प्रोडक्शन) होता है।
  • यदि इसका उत्पाद (आउटपुट) कम है तो इसका मतलब है कि निवेश राशि का एक हिस्सा काले धन में परिवर्तित हो रहा है। हालांकि, अर्थव्यवस्था के ढांचे में बदलाव, क्षमता में बढ़ोत्तरी और तकनीकी उन्नत होने पर यह तरीका कारगर नहीं रह पाता है।
  • काले धन का पता लगाने का दूसरा तरीका अर्थव्यवस्था के आकार के हिसाब से मुद्रा परिसंचरण (करेंसी सर्कुलेशन) की तुलना करना है। यह तरीका इस फार्मूला पर चलता है कि मुद्रा का इस्तेमाल सामान्य और समानांतर अर्थव्यवस्था दोनों में ही होता है।
  • ऐसे में छोटी अर्थव्यवस्था में ज्यादा करेंसी सर्कुलेशन यह बताता है कि वहां समानांतर अर्थव्यवस्था भी मौजूद है। हालांकि, ऐसे अनुमान में असंगठित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को नियमित अर्थव्यवस्था में शामिल नहीं किया जाता है।

भारत मे काले धन की स्थिति-

  • काले धन और काली अर्थव्यवस्था (ब्लैक इकोनॉमी) को मापने का कोई सटीक पैमाना या तरीका नहीं है। ज्यादातर तरीके पुराने हैं और उनमें कई तरह की खामियां हैं।
  • एनआईपीएफपी के एक अध्ययन के अनुसार, देश में साल 1983-84 में 32,000 से 37,000 करोड़ रुपए का काला धन था।
  • वहीं, साल 2010 में अमेरिका की ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी ने अनुमान लगाया था कि 1948 से 2008 के बीच भारत से 462 अरब डॉलर की रकम बाहर गई है।

Source – PIB