अंतरराष्ट्रीय संकट से उपजी महंगाई और इससे राहत के उपाय


भारत मे थोक मुद्रास्फीति दर दहाई के अंक के स्तर पर बनी हुई है। नौ साल के उच्चतम स्तर पे पहुँचते हुए इसका आंकड़ा अब 15.1 फीसदी पर जा पहुँचा है। इसका एक प्रमुख कारण है विश्व मे आपूर्ति की तुलना में माँग का लगातार बढ़ते जाना। अब आपूर्ति में आई इस कमी कर कारणों को तलाशे तो इसकी जड़ में दो साल पहले आया कोविड संकट है और अभी हालिया समय मे इसके बढ़ने का कारण रूस-यूक्रेन युद्ध है।

महंगाई के उच्च स्तर को ही सामान्य बनाने के लिए अभी भारत सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाने का फैसला लिया है। इस फैसले से आम जनता का तो ईंधन पर किया जाने वाला खर्च तो बचेगा ही, इसके साथ सामानों की आवाजाही अर्थात उनकी ढुलाई भी सस्ती होगी। ये कही न कही विभिन्न उत्पाद और सेवाओं के दाम को भी कम करने में सहायक होगी।

सरकार ने इसीलिए गेहूँ के निर्यात पर भी फौरी प्रतिबंध लगाया था कि इससे घरेलू बाजारों में गेहूँ के दाम न बढ़ने पाएं और शहरी मध्यवर्ग पर इसकी कर न पड़े। अगर भारत मे महंगाई के लक्ष्यों को निर्धारित करने की बात करें तो भारत मे मुद्रास्फीति का लक्ष्य लगभग 6 फीसदी रखा गया है। वही अमेरिका के लिए ये आंकड़ा महज दो फीसदी है। हालांकि अमेरिका में महंगाई की दर 8.3 फीसदी एक स्तर पर पहुँच गयी है। यूरोप में भी महंगाई उच्च स्तर पर बनी हुई है।

इस दृष्टि से यदि हम देखे तो सम्पूर्ण विश्व जगत महंगाई से हलकान हुआ पड़ा है। चूँकि रूस-यूक्रेन गेहूं के एक बड़े उत्पादक है। इसके साथ ही यूक्रेन सूरजमुखी के तेल का एक बड़ा उत्पादक है। ऐसे के यहाँ से आपूर्ति के बाधित होने से सम्पूर्ण विश्व पर इसका असर हुआ है। अब विश्व मे न सिर्फ खाद्य तेलों का संकट है बल्कि खाद्यान्न संकट भी है। कच्चे तेल के दाम बढ़ने से वस्तुओं के दाम बढ़ जाते है क्योंकि इससे सामान की ढुलाई महंगी हो जाती है।

भारत चूंकि अभी भी आयात ओर बहुत निर्भर है। इसलिए आयातित महंगाई भारत को बहुत प्रभावित करती है। भारत मे कोविड पूर्व स्थिति मे जहाँ आयातित मंहगाई का अनुपात 28 से 30 फीसदी होता था वही अब ये आंकड़ा बढ़कर फीसदी हो गया है। इसके अलावा चीन द्वारा निर्यात किये जाने वाले उत्पादों यथा देसी कम्प्यूटर हार्डवेयर, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और दूरसंचार उपकरणों की आपूर्ति पर भी असर हुआ है। अब चीन बेहद इन्हें कम मात्रा में निर्यात कर रहा है।

यदि इस आयातित महंगाई के संकट से पार पाना है तो हमें सबसे पहले इन उत्पादों के भारत मे ही निर्माण पर जोर देना होगा। इसके साथ ही भारत को परंपरागत ईंधन के विकल्प पर ध्यान देना होगा। भारत ने इस दिशा में काम करना भी शुरू कर दिया है। हाइड्रोजन ईंधन के विकास पर भारत जिस तरह से जोर दे रहा है उससे भारत न सिर्फ इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि भारत हाइड्रोजन निर्यातक भी बनेगा। सेमीकंडक्टर आज की तारीख में सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में इस्तेमाल होता है। भारत ने सेमीकंडक्टर के हब बनने की दिशा में पर्याप्त कदम उठाएं है। सेमीकॉन डिप्लोमेसी के माध्यम से इसके विकास के लिए दूसरे देशों का भी सहारा लिया जा रहा है। मगर महंगाई से निपटने के ये दीर्घकालिक समाधान है।

अगर फौरी तौर पर इसके लिए कुछ समाधान की बात की जाएं तो वो ये है कि भारत को भी खाद्य वितरण में और अधिक तर्कसंगतता लानी होगी। मसलन विभिन्न सरकारी अन्न वितरण योजनाओं में गेहूं के अलावा दूसरे अनाज को भी शामिल करना होगा। चावल, मोटे अनाज और दालें इसका विकल्प यो सकती है। इससे किसान विदेश के बाजारों में गेहूं का निर्यात कर पाएंगे। ये किसानों की आय भी बढ़ाएगा। इसके लिए भारत ने विनिर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के जो उपाय शुरू किए है उसके परिणाम भी अब धीरे-धीरे आने लगे है।

इस तरह से भारत को महंगाई से निपटने के लिए दीर्घकालिक सह फौरी योजनाओं पर अमल करना होगा। भारत को अभी के समय मे महंगाई से निपटने के लिए बनाई गई योजनाओं को इस तरह से बनाना होगा कि ये दीर्घकाल में इस उद्देश्य से बनाई जा रही कार्ययोजनाओं से समेकित हो सकें।

संकर्षण शुक्ला