भारतीय संस्कृति एवं वर्तमान में महिलाओं की स्थिति


आज वह सभ्यता अपने विनाश की ओर है, जिसके बारे में कहा गया है कि जिन नारियों को कभी वायुदेव भी उनकी इच्छा के बिना स्पर्श नही कर सकते थे।

जिस सभ्यता की नारियां ज्ञान और युद्ध दोनों में अग्रणी थीं। लेकिन आज कोई भी आसमानी विचारधारा वाला आतंकी या दुष्ट नारी शक्ति की जिंदगी बर्बाद कर देता है।

इसे विनाश न कहा जाए तो क्या कहा जाए? हमारे पूर्वज, जो महिला और पुरुष साथ मिलकर युद्ध लड़ते थे, एक साथ शास्त्रार्थ करते थे, लेकिन आज हमारे कुछ लोग ही कहते हैं कि ” बेटी पराए घर की अमानत है”।

यदि आप अपनी बेटी को उन मुद्गलानी की तरह नही बना सकते जिसके बारे में ऋग्वेद में वर्णन है कि “मुद्गलानी जब अपने धनुष बाण के साथ युद्ध में प्रवेश करती थीं तो युद्धभूमि में शत्रुओं के कटे हुए मस्तक दिखाई पड़ते थे।” तो आप किस प्रकार स्वयं को सनातन धर्मी या हिन्दू कह सकते हैं ?

यदि आप माता सीता, कैकई की तरह अपनी बेटी को युद्ध और ज्ञान हर तरह से तैयार नही करते हैं तो आप सनातनी नही है।

यदि आप अपनी बेटी को सावत्री, विश्पला, लोपामुद्रा आदि की तरह ज्ञानी और तर्कशील नही बनाते हैं जो आसमानी आतंकियों या किसी भी धूर्त के झांसे में न आए। तो आप सनातन धर्म के दुश्मन है।

केवल सनातन धर्म ही ऐसा धर्म है जहाँ ब्रम्हा को स्त्री पुरूष दोनों रूपों में देखा गया है। वेदों की ऋचाओं का संकलन करने वाली अनेक विदुषी स्त्री ऋषियों का वर्णन है।

यदि इन सबके बावजूद भी आप और हम स्वयं को तैयार नही कर पाते तो मान लीजिए । हमारी सभ्यता का अंत सुनिश्चित है ….

यदि हम आसमानी आतंकियों और बलात्कारी मानसिकता का सामना नही कर सकते हैं ,देश को नही बचा सकते हैं तो हमारी सभ्यता का अंत होना तय है।

लेखक :- Dhruv Kumar