सप्तसिंधु व सूर्यवंश के संस्थापक :- महान मनु, (पार्ट-1)


7500 ईसा पूर्व …

अंतिम शीत युग समाप्त हो गया था, परिणामस्वरूप सम्पूर्ण पृथ्वी की जलवायु में व्यापक परिवर्तन हो रहे थे। उत्तर भरतभूमि का वह विशाल भूभाग जो कभी तीन मीटर मोटी हिम से हिमाच्छादित था।

इस प्रदेश में विशाल हिम वनों और सरस्वती, गंगा और सिंधु जैसी समुद्र के समान उफ़नती नदियों के किनारे मानवों की अनेक प्रजातियां निवास करती थी जैसे निएंडरथल, नाग, गन्धर्व आदि। 

इसके अलावा इस हिमप्रदेश मे श्वेत भालुओं, भेड़ियों, हिम पिशाचों, खूंखार शीत युग के जानवरों और पेंग्विन का बोलबाला था।

लेकिन जब अंतिम हिमयुग का अंत हुआ और पृथ्वी का तापमान तीव्रगति से बढ़ना आरंभ हुआ, तब उत्तर भरतभूमि की जातियों के लिए जीवन सुगम हो गया, विस्तृत घास के मैदानों का निर्माण हुआ, कृषि कार्य आरंभ हुआ। नई सभ्यता का तीव्र विकास हुआ ऐसा लगा जैसे शीघ्र ही इस प्रदेश में वैभव व्याप्त हो जाएगा।

लेकिन इसी के साथ दो प्रकार की समस्याएं भी आरंभ हो गई। 

प्रथम भरतभूमि के दक्षिण भाग में स्थित विकसित ‘संगम सभ्यता’ जो तत्कालीन विश्व की सबसे विकसित सभ्यताओं में थीं और जिसका अटलांटिक महासागर की अटलांटिस सभ्यता से व्यापारिक सम्बंध था। उसका पतन आरंभ हो गया ।

क्योंकि समुद्र का जलस्तर बढ़ने से सम्पूर्ण दक्षिण भरतभूमि समुद्र में समाने लगी ऐसा लग रहा था जैसे प्रभु वरुण ने अपना कहर बरपाया हो ।

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दूसरी ओर एक समस्या उत्तर उत्तर भरत भूमि में पैदा हो गई थीं । क्योंकि उत्तर के विशाल व उपजाऊ भूमि पर अधिकार के लिए वो दैत्य आक्रमण करने के लिए तत्पर थे। 

जिन्हें कभी अंधकार की शक्तियों का स्वामी कहा जाता था और जो प्रत्येक जीवित वस्तु से घृणा करते थे। वे लगातार उत्तर पश्चिम के हिंदुकुश के दुर्गम पर्वतों को पार करके आक्रमण करने की कोशिश कर रहे थे।

तब प्रभु आदिवराह की प्रेरणा से द्रविण देश के अंतिम शासक और चौदहवें महाराज मनु ने मानव जाति के कल्याण और सप्तसिंधु की रक्षा के लिए एक बीड़ा उठाया।

उन्होंने अपनी प्यारी प्रजा के साथ संगम देश को त्यागकर सप्तसिंधु की ओर प्रवास करने का निर्णय किया।

यह निर्णय उनके लिए अत्यंत पीड़ादायक था। क्योंकि उनका यह प्रदेश अत्यंत समृद्ध था और यह उनके पूर्वजों की पवित्र भूमि थी।

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लेकिन तब महान प्रभु आदिवराह ने उनसे कहा था कि “आपका त्याग विफल नही होगा मनु, हजारों वर्ष के पश्चात यह प्रदेश पुनः अपना वैभव प्राप्त करेगा, आज आपकी आवश्यकता उत्तर भरतभूमि को हैं …. हजारों वर्षों के बाद रुद्र इसे पुनः स्थापित करेंगे।”

परिणामस्वरूप वो चल दिए एक दुरूह यात्रा पर जिसके बारे में उन्हें भी नही पता था कि आगे क्या होगा।

उन्हें हृदय में अनेक आशंकाए थी “क्या वे नई सभ्यता के निर्माण का भार उठा पाएंगे … क्या कभी रुद्र आएंगे ।क्या उनके वंशज कभी सम्पूर्ण भरतभूमि को एक कर पाएंगे ताकि वह महान वैभव को प्राप्त करे। “

लेखक : ध्रुव कुमार