सप्तसिंधु व नई सभ्यता के संस्थापक:-महान मनु (भाग-2)


7500 ईसा पूर्व … 

संगम साम्राज्य – (द्रविण देश)

“महाराज हमारे पास अब अधिक समय नही है। हमारे राज्य के दक्षिण की पहाड़िया पूरी तरह से जलप्लावित हो गई है, पस्चिमी घाट भी जल में डूब चुके हैं। …

संगम देश के सेनापति ने महाराज मनु से कहा, फिर वह आगे बोला ….

“उधर उत्तर भरत भूमि का जल लगातार दक्षिण की ओर बढ़ रहा है। हमारी पवित्र कावेरी नदी में बाढ़ की स्थिति बन गई है। अब आगे आपका क्या आदेश है। …. “

महाराज मनु अपनी पत्नी शतरूपा से उन लोगों का हालचाल लेने में व्यस्त थे, जो सुदूर दक्षिणी भूमि के समुद्र में विलीन हो जाने से उत्तर की ओर भागकर आए थे और जिन्होंने राजधानी में शरण ली थी। महारानी सतरूपा ने स्वयं उन लोगों की देखभाल का उत्तदायित्व उठाया था। 

राजधानी में चारो ओर अस्थायी प्रवास बना दिए गए थे। बच्चे और महिलाओं की स्थिति लगातार बिगड़ गई थी। राज्य के पूरे संसाधन लगाकर भी बीस हजार की विशाल जनसंख्या को सम्भालने में चुनौती आ रही थी ।

क्योंकि राज्य के अनेक संसाधन इस जलप्रलय में बर्बाद हो गए थे।हजारों मवेशी मारे गए थे, अनाज की किल्लत बढ़ती जा रही थी।

“भगवान आदिवराह रक्षा करें, लगता है कि हमारे राज्य और मानवता का अंत निकट है” … उदास होते हुए मनु ने शतरूपा से कहा …

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फिर उन्होंने मुड़ते हुए अपने सेनापति से प्रश्न किया “क्या गन्धर्वों की ओर से कोई सहायता आई है। मुझे नही लगता है कि मैं आदि वराह को दिए गए उस प्रण को पूरा कर पाऊंगा …”

“महाराज उत्तर से जो सहायता आ रही थी।उसमें से कुछ जलप्रलय में तबाह हो गई और जो बची उसे उन शापित दैत्यों ने लूट लिया जो इस समय उत्तर भूमि पर लगातार हमले कर रहे हैं।” सेनापति ने उत्तर दिया …

क्रोधित होते हुए मनु ने कहा “मुझे भगवान इन्द्र की सौगंध एक बार इस प्रलय से मुक्त हो जाऊं, उन नर पिशाचों की नस्ल को मिटा दूंगा ।”

“अब आगे क्या करना है महाराज, क्या हम सुदूर नई भूमि को खोजने के लिए चल रहे हैं। क्योंकि यह प्रदेश जल्द ही पूरी तरह जलमग्न हो जाएगा। “…

“हम इस यात्रा पर चल सकते हैं, लेकिन कैसे।क्या हमारी प्रजा प्रमुख रूप से महिलाएं, बच्चे और वृद्ध इस दुर्गम यात्रा पर कैसे जा सकेंगे और हमें यह भी नही पता हैं कि वह भूमि कहाँ है जो हमें सहारा देगी” ……

इस समय उत्तर भूमि की नदियां भी लगातार उफ़न रही हैं, लगातार भूस्खलन हो रहे हैं अतः हम उत्तर की यात्रा कैसे करेंगे। “…. 

कुछ समय उस महल में शांति छा गई किसी को कुछ समझ में नही आ रहा था ……

कुछ समय के बाद महारानी शतरूपा ने कहा “आर्य, क्या हम समुद्र मार्ग से नही चल सकते हैं क्योंकि इस समय समुद्र मार्ग भूमि मार्ग से कहीं ज्यादा सुरक्षित और सुगम होगा।” …..

“लेकिन महारानी समुद्री यात्रा का भी प्रबंध इतनी शीघ्रता से नही किया जा सकता, उसके लिए हमें कोई ऐसा साधन चाहिए जो हमारी इतनी विशाल जनसंख्या को उत्तर दिशा की ओर लेकर जा सके। क्योंकि इस समय समुद्र में भी विशाल लहरें उठ रही हैं। “….मनु ने उत्तर दिया …

“महाराज इसका एक माध्य्म हैं हो सकता है कि वह आपको थोड़ा काल्पनिक लगे लेकिन वह हमारी सहायता कर सकता है … “

“वह क्या है ” …

“वह हैं विशाल समुद्र के स्वामी वरुण देवता की सवारी और भगवान आदिवराह के प्रिय “समुद्री दैत्य”, शतरूपा ने काफ़ी सावधानी और सकुचाते हुए कहा …

“भगवान आदिवराह रक्षा करें, महारानी लेकिन क्या वे हमारे नियंत्रण में आएंगे, उनको “समुद्रों का रक्षक” कहा जाता है। कहा जाता है भगवान वरुण ने भी आदि वराह की कृपा से ही उन पर नियंत्रण प्राप्त किया था।” मनु ने उत्तर दिया ।

“आप कर सकते हैं स्वामी, आप पर आदि-वराह की कृपा है और यदि मृत्यु होनी ही है तो अपने पूरे प्रयास करके ही देखने चाहिए ताकि ईश्वर के सामने हम यह कह सकें कि हमने अपने राजधर्म से कभी मुख नही मोड़ा था’ शतरूपा ने मनु को समझाते हुए कहा।

“आप कहती हैं तो एक बार मैं यह भी प्रयास करके देखता हूँ ताकि कोई यह आरोप न लगा सके कि मनु ने राजधर्म का पालन नही किया “।

आगे मनु ने कहा “यदि आपकी यही इच्छा है तो मैं जाता हूँ लेकिन आपको तब तक हमारी प्रजा को तैयार करना होगा कि हम नई भूमि की खोज पर चल रहे हैं, साथ ही आपको जीवन को नए सिरे से आरंभ करने के लिए सभी आवश्यक वस्तुओं का संग्रह भी करना होगा “।

मनु इतना कहकर अपने सेनापति के साथ विशाल समुद्र की ओर चल दिए उस “समुद्री दैत्य” को खोजने जिसे विशाल समुद्रों का रक्षक कहा जाता है और जिसका आकार चालीस मीटर वजन डेढ़ लाख से दो लाख किलो होता है।

लेखक : ध्रुव कुमार