भारतीय कृषि उत्पादों की धाक जमाने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाने पर जोर


चर्चा में क्यों ?

  • विश्व बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों की धाक जमाने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाने पर जोर है। यहां की खास जलवायु इसमें खास मददगार साबित होगी।

मुख्य बिंदु :-

  • इन राज्यों में दाकिला और फ्लोरिकता के साथ आर्गेनिक फसलों की पर्याप्त संभावनाएं हैं। गुणवत्ता के स्तर पर यहां के कृषि उत्पादों की घरेलू बाजार के साथ निर्यात बाजार में भी मांग है। इन राज्यों में विशेष गुण वाले मसाले और फसलों की खेती होती है, जिसकी माकेटिंग से यहां के किसानों की दशा व दिशा बदल सकती है।
  • केंद्र सरकार ने इसके लिए विशेष मसौदा तैयार किया है, जिसका एक हिस्सा लागू भी कर दिया गया है। कृषि निर्यात को दोगुना करने के लक्ष्य को पूरा करने में पूर्वोत्तर के राज्यों की अहम भूमिका हो सकती है।
  • निर्यात के हिसाब से उत्पादों की गुणवत्ता का बुनियादी ढांचा विकसित किया जा रहा है। इन राज्यों में विश्वस्तरीय फलों व फूलों की खेती की संभावना के मद्देनजर यहां उन्नत खेती की टेक्नोलाजी और उसके निर्यात के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा रहा है।
  • कृषि मंत्रालय ने एग्री एक्सपोर्ट को आगे बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र में आर्गेनिक कृषि उत्पादों विशेष बढ़ावा दिया गया है। इन उत्पादों के सर्टिफिकेशन से लेकर भंडारण और लाजिस्टिक की सुविधाएं विकसित की जा रही हैं।
  • एग्रीकल्चरल इंफ्रास्ट्रक्चर फंड की इसमें अहम भूमिका है। किसान रेल की तर्ज पर इन राज्यों के लिए किसान उड़ान जैसी योजना विशेष लाभकारी साबित हो रही है। वहां के तैयार ताजा विशेष किस्म के फलों और फूलों की खेप रोजाना ग्लोबल बाजार में उतरने लगी है।
  • यहां के लगभग सभी राज्यों की अपनी खासियतें हैं, जिसका उपयोग विश्व बाजार में अपना दबदबा कायम करने में हो सकता है। यहां की विभिन्न प्रजातियों को जियोगाफिकल एंटीपान (जी धार) टैग प्राप्त कर लिया गया है।
  • सिक्किम की बड़ी इलायची, असम की कार्बी एनग्लांग अदरक, नगा मिर्च, मिजोरम की बस आई चिल्ली, हथेई चिल्ली और डल्ले खुर्सानी जैसे उत्पादों की घरेलू बाजार से लेकर निर्यात बाजार में भी है।
  • एक आंकड़े के अनुसार असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम की देश की कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में तीन फीसद की हिस्सेदारी है। जबकि देश के कृषि उत्पादों के कुल निर्यात में मुश्किल से यहां के उत्पादों की हिस्सेदारी एक फीसद ही है।
  • हालांकि यहां निर्यात की पर्याप्त संभावनाएं हैं, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में यहां के उत्पादों का न घरेलू बाजार में पहुंचना आसान है और न ही निर्यात बाजार में पहुंचाना। इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने कई योजनाएं तैयार की हैं। 
  • पूर्वोत्तर के कृषि उत्पादों की पड़ोसी देश बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार के साथ दक्षिण पूर्व एशिया समेत अन्य देशों में निर्यात की पर्याप्त संभावनाएं हैं। एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्राडक्ट्स एक्सपोर्ट डवलपमेंट अथारिटी (एपीडा) ने इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं।
  • इन राज्यों में विश्व स्तरीय गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार हो रहे हैं, जो स्थानीय खपत से बहुत ज्यादा हो रहे हैं। इस सरप्लस कृषि उत्पादों को मार्केटिंग की सख्त जरूरत है। टमाटर, केला, कीवी, पाइनएपल, खास तरह के मसाले और कट प्लावर की उन्नत खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए यहां कनेक्टिविटी, लाजिस्टिक, पोस्ट हार्वेस्टिंग, प्रोसेसिंग, निर्यात की सुविधाओं के लिए बड़ा केंद्र स्थापित किया जा रहा है। 

Source – DTE