आजादी से लेकर अब तक भारत में खेल पारितंत्र में हुए परिवर्तन


भारत को आजादी मिले अभी एक साल भी न बीता था कि 1948 का लंदन ओलंपिक शुरू हो गया। एक स्वतंत्र देश के रूप में भारत ने भी इस खेलों के महाकुंभ में हिस्सा लिया। दो सौ वर्षों की अंग्रेजी दासता के बाद भारत के पास न तो पर्याप्त खेल संसाधन थे और न ही मजबूत खेल पारिस्थितिकी तंत्र था। तत्कालीन भारत मे खेलों की स्थिति का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि भारत की फुटबॉल टीम के खिलाड़ियों ने इस टूर्नामेंट में बिना जूतों के प्रतिभाग किया था। भारत, फ्रांस के विरुद्ध खेले गए एकमात्र फुटबॉल मैच में 2-1 से हार जरूर गया था मगर भारतीय खिलाड़ियों के खेल ने सभी का दिल जीत लिया था। इसी टूर्नामेंट में भारतीय हॉकी टीम ने इंग्लैंड को 4-0 से हराकर स्वर्ण पदक भी अपने नाम किया। ये भारत का एक आजाद देश के तौर पर ओलंपिक पदक तालिका में आगाज भी था।

साल 1951 में भारत को एक बड़े खेल टूर्नामेंट ‘एशियन गेम्स’ की मेजबानी मिली । इस खेल आयोजन से पूर्व विभिन्न देश सशंकित थे कि भारत कैसे इस आयोजन की मेजबानी करेगा? एक देश के रूप में खड़ा होने की कोशिश कर रहे भारत ने न सिर्फ इस खेल का सफल आयोजन किया बल्कि इस स्पर्धा में 15 गोल्ड मेडल भी जीते। इसी एशियन गेम्स में लेवी पिंटो ने 100 मीटर स्प्रिंट दौड़ में गोल्ड मेडल जीता जो इस स्पर्धा में भारत का अभी तक का रिकार्ड है। एशियन गेम्स के सफल आयोजन ने ये भी दर्शाया कि भारत सरकार अपने देश मे खेलों के विकास को लेकर गंभीर है।

भारत बेशक उस दौर में एक निम्न प्रति व्यक्ति आय वाला विकासशील देश था किंतु भारत मे खेलों के प्रति उस दौर में भी गजब रूझान था। यही कारण है कि जिन खेलों में भारत अभी ओलंपिक में क्वालीफाई भी न कर पाता है उन खेलों में भारत तब के दौर में ओलंपिक में भाग लेता था। उदाहरण के तौर पर भारत की फुटबॉल टीम ने साल 1948, 1952 और 1956 के ओलंपिक खेलों में भाग लिया था; आज भारत इस स्पर्धा में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी न कर पाता है। इसके अलावा इन तीनों ही ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने गोल्ड मेडल भी जीते।

भारत अपने परंपरागत खेल कुश्ती में भी अच्छा प्रदर्शन कर रहा था जो आज तक बदस्तूर जारी है। यही कारण है कि साल 1952 में केडी जाधव ने कांस्य पदक जीतकर व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत के लिए पदक का खाता खोला। साल 1952 में ही भारत की क्रिकेट टीम ने इंग्लैंड के विरुद्ध अपना पहला टेस्ट मैच भी जीता था। इसी साल भारतीय क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान को हराकर अपनी पहली टेस्ट सीरीज भी जीती थी। कुलजमा ये कहा जा सकता है कि भारतीयों ने इतने साल गुलाम रहने के बावजूद न तो खेलों में अपनी रूचि कम की थी और न ही खुद को खेल खेलने से दूर किया था। इसी का परिणाम था कि भारत विभिन्न खेलों में न सिर्फ अच्छा प्रदर्शन कर रहा था बल्कि जीतें भी दर्ज कर रहा था।

अगर किसी देश में खेल पारिस्थितिकी के स्तर को जांचना हो तो उसका सबसे मानीखेज तरीका है ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन। भारत ने अब तक कुल 24 ओलंपिक में हिस्सा लिया है और भारत को खेलों के इस महाकुंभ में अब तक 35 पदक मिले है। हालिया 2021 के टोक्यो ओलंपिक में भारत द्वारा जीते गए 7 पदक भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत को अभी मीलों जाना है। इससे पहले भारत कई ओलंपिक आयोजनों तक तो इक्के-दुक्के पदक ही ला पाता था।

साल 2008 में भारत ने पहली बार 3 पदक जीते और इस ओलंपिक की सबसे खास बात थी; भारत का व्यक्तिगत स्पर्धा में पहली बार स्वर्ण पदक जीतना- इस टूर्नामेंट में अभिनव बिंद्रा ने शूटिंग में स्वर्ण पदक जीता था। इसके बाद साल 2012 में भारत ने 6 पदक जीते। हालांकि भारत के इस सफर की रफ्तार 2016 में बरकरार न रह सकी और भारत को इस साल के ओलंपिक में मात्र 2 पदक मिले।

अगर किसी खेल ने ओलंपिक में भारत का डंका बजाया है तो वो है हॉकी। भारत के लिए कुल ओलंपिक में सबसे ज्यादा 12 पदक भारतीय हॉकी टीम ने ही जीते है। इसके बाद भारत ने फ्री स्टाइल कुश्ती में भारत ने अब तक कुल 7 पदक जीते है। शूटिंग में भारत के हिस्से जहाँ 4 पदक आएं है वही एथलेटिक्स, बैडमिंटन और बॉक्सिंग स्पर्धाओं में भारत को 3-3 पदक मिले है। इसके अलावा वेटलिफ्टिंग में 2 और टेनिस में 1 पदक अब तक भारत को मिला है।

ओलंपिक के अतिरिक्त भारत जिन अन्य अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भी प्रतिभाग करता है, जैसे- एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम, पैरालंपिक आदि। इसके अलावा भारत अलग-अलग खेलों की विश्व स्पर्धाओं में भी भाग लेता है। भारत के सुप्रसिद्ध एथलीट मिल्खा सिंह एशियाई खेलो और कॉमनवेल्थ खेलों की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले एकमात्र एशियाई बने थे। प्रकाश पादुकोण 1980 के साल विश्व बैडमिंटन रैंकिंग में जहाँ नम्बर 1 बने तो वही राष्ट्रमंडल खेल प्रतियोगिता में इस खेल में भारत को पहला स्वर्ण पदक भी दिलवाया। इसके अलावा साल 1983 में भारतीय क्रिकेट टीम ने विश्वकप भी जीता, आगे चलकर भारत मे ये खेल सिर्फ खेल भर न रहा बल्कि अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण कारक भी बन गया।

भारत ने न सिर्फ आउटडोर गेम में जबरदस्त खेल दिखाया बल्कि इनडोर खेलों में भी यहाँ के खिलाड़ियों ने अपनी जबरदस्त प्रतिभा का परिचय दिया। तमिलनाडु के विश्वनाथन आनंद शतरंज स्पर्धा में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने तो साल 2007 में वो इस खेल कब विश्व चैंपियन भी बने। दीपिका पल्लीकल जहां स्क्वैश चैंपियन है तो पंकज आडवाणी स्नूकर चैंपियन है। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि भारत दुनिया के लगभग सभी खेल आयोजनों का हिस्सा तो बनता ही है, साथ ही वो दुनिया के लगभग सभी खेल भी खेलता है।

भारत में अगर खेलों की बात हो और क्रिकेट का जिक्र न आएं तो ये भारतीय खेलप्रेमियों के साथ नाइंसाफी होगी। लोगों को ये लगता है कि भारतीय क्रिकेट 1983 के बाद ही ग्लैमर की दुनिया का हिस्सा बना मगर ये मान्यता पूरी तरह सही नही है। साल 1960 में बिलक्रीम का एक विज्ञापन आता था और उस विज्ञापन के कलाकार थे फारूख इंजीनियर जो अपने जमाने का धाकड़ क्रिकेटर थे। हालांकि 1983 वो साल जरूर है जब भारतीय क्रिकेट महज एक खेल न रहकर जनभावना तो बन ही गया साथ ही इसने इस खेल के लिये वो व्यावसायिक बुनियाद तैयार की जिसकी मंजिल बनी आईपीएल।

आईपीएल के सफल आयोजन, इससे मिलने वाले आर्थिक लाभ और इससे जनता को अनुभूत होने रोमांच और मनोरंजन ने अन्य खेलों को भी ऐसी प्रतियोगताओं को आयोजित करने हेतु प्रेरित किया। इसी का परिणाम है कि आज देश मे विभिन्न खेल स्पर्धाओं जैसे फुटबॉल की इंडियन सुपर लीग, बैडमिंटन की इंडियन बैडमिंटन लीग, कबड्डी की प्रो कबड्डी जैसी मनोरंजक और व्यावसायिक खेल स्पर्धाओं का सफल आयोजन हो रहा है।

भारतीय खेलों को आर्थिक दृष्टिकोण से लाभ का सौदा बनाने में पी.वी.नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्रित्व काल मे लिए गए आर्थिक उदारीकरण फैसले की भी प्रमुख भूमिका रही है। इस फैसले के बाद खेल और खिलाड़ियों के लिए बाजार के रास्ते खुले। इससे पहले खिलाड़ियों को उनके खेल कौशल के एवज में बोर्ड उतनी ही रकम का भुगतान करता था जो उन्हें खेलने के लिए संसाधन मुहैया कराएं और उनकी एवं उनके घर की कुछ जरूरतें पूरी हो जाएं। उदारीकरण के बाद खिलाड़ियों को विभिन्न ब्रांड के विज्ञापन करने के अवसर मिले। खिलाड़ी एक विज्ञापन करके जितनी रकम कमा लेता था उतनी रकम बोर्ड उसे सालोंसाल में न दे पाता था। क्रिकेटरों ने तो इस मामले में नए कीर्तिमान ही स्थापित कर लिए। फोर्ब्स की सबसे ज्यादा कमाई करने वाले खिलाड़ियों की सूची में।लगातार क्रिकेटर ही दिखते है; जैसे सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली आदि।

अब तो खिलाड़ियों को सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी किसी उत्पाद के विज्ञापन हेतु पोस्ट लगाने के एवज में कंपनियां मोटा भुगतान करती है। खेल अब भारत मे महज फिटनेस, रोमांच, मनोरंजन भर का मुद्दा न है बल्कि अब ये एक खेल आर्थिक पारितंत्र बन चुका है जहाँ से लाखों-लाख रोजगार सृजित होते है। इस प्रकार ‘खेल’ देश की अर्थव्यवस्था में भी एक बड़ा योगदान देते है।

भारत में खेल बजट में आजादी के बाद से लगातार बढ़ोत्तरी ही होती रही है। आजादी के शुरूआती 30 सालों तक देश आकार ले रहा था। ऐसे में खेल और खेलों के पारितंत्र पर सीमित ध्यान ही दिया गया। साल 1982 में खेल विभाग के रूप में एक खेल प्रतिबद्ध विभाग की स्थापना की गई। इसने सफलतापूर्वक 9वें एशियाई खेलों का आयोजन भी किया। साल 1984 में भारतीय खेल प्राधिकरण की स्थापना इस उद्देश्य के साथ की गई कि भारत मे खेलों का व्यापक स्तर पर प्रसार तो ही साथ ही विश्व स्तर के खिलाड़ी भी तैयार हो सकें। इसके अतिरिक्त विभिन्न विश्वविद्यालयों में खेलों के वातावरण का निर्माण करने हेतु यूजीसी द्वारा इस मद में भी अनुदान की मात्रा समय-समय पर बढ़ाई जाती रही।

भारत ने साल 2010 में कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन किया तो 2011 में क्रिकेट के महाकुंभ एकदिवसीय क्रिकेट विश्वकप का भी सफल आयोजन किया। विभिन्न खेलों के सफल आयोजन ने भारत की सॉफ्ट पॉवर में भी वृद्धि की। हालांकि भारत ने ओलंपिक खेलों में अपना सर्वश्रेष्ठ न दिया है। इसी उद्देश्य को ध्यान रखते हुए भारत सरकार ने खेलो इंडिया यूथ गेम्स के माध्यम से 17 साल के कम उम्र के खिलाड़ियों का चयन कर उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने हेतु चयनित किया।

इसके अलावा सरकार ने मिशन ओलंपिक सेल का भी गठन किया है जो सरकार के एक कार्यक्रम टॉप्स के तहत चुने गए एथलीट की पहचान कर उन्हें प्रशिक्षण समर्थन देता है। नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन भी ओलंपिक, कॉमनवेल्थ सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगताओं में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों की मदद करता है। एथलीट में भारत की ओर से एकमात्र स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा को भी उनके तैयारी के क्रम में उच्चस्तरीय सुविधाएं मुहैया कराई गई थी; उनके कोच उवे हॉन सर्वश्रेष्ठ भांला फेंक प्रशिक्षक है। भारतीय खेलों को संवारने के लिए की जा रही इन सभी तैयारियों का असर आगामी पेरिस(2024) और लॉस एजिंल्स(2028) ओलंपिक में भी दिखेगा।

संकर्षण शुक्ला