एक महाराजा की सोच आज भारत का सबसे अमीर खेल बोर्ड है: कहानी बीसीसीआई की


इस कहानी की शुरूआत तब से शुरू होती है जब भारत मे क्रिकेट नामक खेल राजा-रजवाड़ों के द्वारा ही खेला जाता था। आम जनता के लिए तो क्रिकेट बस गोरे अंग्रेजों, राजाओं-राजकुमारों और बड़े बाबुओं का खेल था। भारतीय रजवाड़े इसे अपने-अपने क्लबों के माध्यम से खेलते थे। उस वक्त क्रिकेट के नियम भी एक क्लब ही बनाता था- मेलबोर्न क्रिकेट क्लब। इसी क्लब का क्रिकेट के नियमों पर कॉपीराइट था। एक देश के रूप में इस खेल को बस दो ही देश खेलते थे- इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया।

फिर आता है 1920-1930 का दशक… जब एक देश के रूप में क्रिकेट खेलने वाले इकाइयों की संख्या में इजाफा करने की बात चलती है। अब सवाल ये उठता है कि इन इकाइयों को मान्यता कौन देगा? इसके प्रतिउत्तर में एक संस्था का निर्माण होता है- इंटरनेशनल क्रिकेट कौंसिल यानी आईसीसी। अब आईसीसी क्रिकेट का एक प्रीमियर निकाय बन जाती है। हालांकि क्रिकेट के नियमों को बनाने की शक्ति अब भी मेलबोर्न क्रिकेट क्लब के पास ही रहती है। आईसीसी क्रिकेट का लोकतांत्रीकरण करती है- विभिन्न देशों को अपनी पूर्णकालिक सदस्यता के माध्यम से।

इसके लिए बस एक देश के क्रिकेट बोर्ड को यहाँ पर पंजीकृत कराना था। मगर भारत तो बिना किसी बोर्ड के क्लबों के माध्यम से क्रिकेट खेलता था। यहाँ क्रिकेट का न तो कोई प्रशासनिक ढाँचा था और न ही सांगठनिक स्वरूप। ये बात पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह तक पहुँचती है। वो विभिन्न क्लबों को मिलाकर एक क्रिकेट बोर्ड का गठन करते है- भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड। इस प्रकार 1928 में वो संस्था आकार लेती है जो कालांतर में विश्व की अमीर खेल संस्थाओं में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करती है।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड नामक निकाय तो बन जाता है। मगर न तो ये भारत के क्रिकेट को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बना पाता है और न ही ये कमाऊ पूत साबित होता है। उस वक्त तक भी क्रिकेट खेलने वाले ज्यादातर राजपरिवारों के ही लोग थे और यही लोग बीसीसीआई के माध्यम से क्रिकेट का प्रशासन भी चलाते थे। धीरे-धीरे देश आजाद होता है। अन्य क्षेत्रों की भांति यहाँ भी स्वराज आता है। अब क्रिकेट में वो लोग भी आते है जो आम भारतीय है। फिर आता है साल 1983 जब भारतीय क्रिकेट टीम वर्ल्डकप जीतती है। संसाधनो के अभावों में खेलने गयी क्रिकेट टीम तप कर कुंदन बनती है और अपनी चमक से सारे देश का ध्यानाकर्षित करती है।

भारतीय क्रिकेट टीम के वर्ल्डकप जीतने के ठीक 4 साल पहले जगमोहन डालमिया को बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष बनाया गया था। डालमिया 1983 के बाद से ‘ब्रांड क्रिकेट’ स्थापित करने की दिशा में जीं-जान से जुट जाते है। भारतीय क्रिकेट का अंतरराष्ट्रीय जगत में तो डंका बज ही गया था, अब डालमिया इसे सोने की चिड़िया बनाने की दिशा में काम करने लगते है। इसी बीच साल 1987 में भारत और पाकिस्तान द्वारा संयुक्त रूप से क्रिकेट विश्वकप की सफल मेजबानी की जाती है। कपिल देव जैसे दिग्गज क्रिकेटरों को अब विज्ञापन भी मिलने लगते है- देश के दो लाल, एक महिंद्रा- एक कपिल… ये एक विज्ञापन की टैगलाइन थी।

भारतीय क्रिकेट अब उस धन निकासी के सिद्धांत से बाहर निकल रहा था जिसमें बीसीसीआई को स्वयं ही ब्रॉडकास्टर को क्रिकेट दिखाने के पैसे देने पड़ते थे और यहाँ खेलने आई टीमो को भी रकम चुकानी होती थी। साल 1987 मे भारत मे रिलायंस कप का आयोजन भी होता है मगर इस टूर्नामेंट में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमें खेलने न आती है। हालांकि इस आयोजन से भी भारतीय क्रिकेट के राजकोष की तस्वीर धुंधली ही रहती है। फिर साल 1992 का वक्त आता है जब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पर 62 लाख का कर्जा चढ़ जाता है। अब डालमिया कोर्ट जाते है और यहाँ से क्रिकेट मैचों के टीवी प्रसारण अधिकार बेचने का रास्ता खुलता है।

साल 1993 में टीडब्ल्यूआई नामक संस्था को ये अधिकार बेचे जाते है जहाँ से इन अधिकारों का स्थानान्तरण दूरदर्शन को होता है। साल 2000-2004 के मध्य दूरदर्शन क्रिकेट मैचों के प्रसारण के बदले 240 करोड़ रूपये की मोटी रकम का भुगतान बीसीसीआई को करता है। इसके बाद साल 2005 में निम्बस नेटवर्क इन अधिकारों के बदले में बीसीसीआई को 612 मिलियन डॉलर की रकम का भुगतान करता है। बीसीसीआई के धनपशु बनने का कारवां इतने पर ही न रूकता है। साल 2018 में सोनी नेटवर्क बीसीसीआई को क्रिकेट मैचों के प्रसारण के बदले 918 मिलियन डॉलर चुकाता है। आईपीएल के जन्म के साथ ही बीसीसीआई आर्थिक सफलताओं के बेमिसाल कीर्तिमान रचता जाता है।

साल 2018-19 के आंकड़ों के अनुसार बीसीसीआई की नेटवर्थ 14,489.80 करोड़ है। आज स्टार इंडिया बीसीसीआई को एक अंतरराष्ट्रीय मैच का 43.20 करोड़ रूपये भुगतान करता है। इतना ही नहीं बीसीसीआई अपने खिलाड़ियों को ग्रेड के हिसाब से वर्गीकृत कर उन्हें 7 करोड़ रूपये तक का वार्षिक भुगतान भी करता है। बीसीसीआई भारत की सॉफ्ट पॉवर को बढ़ाने में भी मदद करता है क्योंकि क्रिकेट देखने-सुनने वाले लोग भारत आते है और भारत को जानने की कोशिश करते है। आज भारत मे क्रिकेट महज एक खेल न होकर खेल संस्कृति बन चुका है।

संकर्षण शुक्ला