हिंदी माध्यम वालों का हाल ए-यूपीएससी (UPSC)


लाखों की संख्या में यूपीएससी तैयारी करने वाले छात्र और लाखों की संख्या में भावनाओं में बहने वाले अभिभावक।

कारण- यूट्यूब पर मची तबाही से प्रेरित होकर, रात को सपना देखते हुए.


सुबह या तो मुखर्जी नगर पहुंचता है या ऑनलाइन कोर्स, पेनड्राइव कोर्स, करेंट अफेयर्स…. के कोर्स खरीदता है। जिसकी खरीदने की स्थिति नहीं, वो फ्री वीडीयो की जुगाड में युद्धस्तर पर जुट जाता है।

मुखर्जी नगर आकर, सबसे पहले वो फाईव स्टार की तरह सजी दुकानों पर पहुंचता है। जहां अंग्रेजियत का चोला ओढ़े, नाक और भोंहे चढ़ाकर बात करती हुई , कस्टमर केअर की प्रतिलिपि और ब्रांड को यूपीएससी का बाप बनाने की महारत हासिल किए हुए लोगों से मुखातिब होता है। बच्चे के दिमाग में ब्रांड ऐसे भर दिया गया है कि वो भांग के नशे में है। रील, शॉर्ट वीडियो, और अपने ही लोगों से हजार यूट्यूब चैनल बनवाकर कमेंट और ट्रोलिंग का खेल अपनी चरम सीमा पर चल रहा है।

बच्चा ये समझ ही नहीं पा रहा है कि यूपीएससी की तैयारी वो शॉर्ट वीडियो वाले भगवान जी नहीं करवाएंगे। वो तो आपको पहले दिन केवल दर्शन देने आएंगे। दर्शन ऐसा कि आसपास एनएसजी कमांडो (ये भी नकली) , ऐसे घेरे हुए होंगे कि यदि किसी छात्र को उन भगवान की की छाया भी पड़ गई तो वो तो मान लो बुद्धत्व को प्राप्त हो गया। अच्छा इसमें बच्चा ही नहीं, हिंदी बेल्ट राज्यों के अभिभावक तक एकदम पगलाए हुए हैं। खेती बाड़ी बेचकर भी किसी तरह संस्थान में एडमिशन करव लेना चाहते हैं।


अच्छा ये तो हुई एक संस्थान की बात। इसके बाद एक और हैं, वे भी बॉलीवुड की तरह फिल्म आने से पहले खुद को सुर्खियों में लाकर अपना मार्केट सेट कर ले गए। पहले वालों से बचे हुए बच्चे इनके यहां सेट हो जाते हैं।


अब बच्चे कुछ थोड़े मोड वे जहां तहां छितराए मेघों की तरह हैं और दुखित दिल से यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं। इसमें भी रात को अपने पीजी में उन ए और बी क्लास वालों का भौकाल देखकर आधा समय इसी में निकाल देते हैं कि ए क्लास वाले में एडमिशन नहीं ले पाए।

अब सुनो काम की बात-

ए क्लास वालों में- लेक्चर ऐसा देना है कि उसमें से शॉर्ट वीडियो बनाए जा सकें और मसाला मिलाकर यूट्यूब पर अपने ही हजार चैनलों और अपने ही लोगों से वाहवाही करवाई जा सके। ये खेल दो साल चला। इसके बाद वीडियो के नशे में रहने वालों ने अपना नशा फैलाना शुरू कर दिया। और ए क्लास और बड़ा ए क्लास बन गया। अब वो भी कमेंट कर रहा है जिसके पास अपने परिवार के सदस्यों को गिनने का भी ज्ञान नहीं है। ……
क्लास में जो पढ़ाई होनी चाहिए, उसका कोई मतलब नहीं। बस रील बननी चाहिए।
मोक इंटरव्यू देने जाए जो बच्चा, उसके आसपास इतने कैमरे लगा दो कि वो अपना नेचुरल स्ट्रेंथ ही भूल जाए। ऊपर से बोर्ड में बैठे लोगों को रील बनने वाले प्रश्न पूछने के लिए पूरी तरह तैयार करो।….. यही सच्चाई है। बहुत करीब से देखा है और देख रहा हूं।

पहले क्या होता था कि बच्चे अलग अलग जगह फैले होते थे। वे पढ़ाई पर फोकस कर पाते थे। क्योंकि अपने #टीचर्ससेउनकाइंटरेक्शनसंभवथा। बहुत गिने चुने बच्चे ही यूपीएससी की तैयारी करने आते थे। अब भीड़ बहुत है क्योंकि उनको दिशा दिखाने वाला कोई नहीं है। सब के सब #शॉर्टवीडियो देखकर चार्ज हुए पड़े हैं।

अत: जब तक यूटयूब की इस दुनिया का राज रहेगा तब तक हिंदी मीडियम #विलुप्तकीसूची में पहुंच ही जाएगा। यहां आकर, #महिलामित्र और #पुरुषमित्र रूपी कहानियां बत्रा से शुरू होकर कनॉट प्लेस के रिवोली तक जाती हैं। डेढ़ दो साल तक ऐसा लगता है जैसे बॉलीवुड और यूपीएससी तैयारी में होड़ लगी हो।

जागरूकताजरूरी। अब एक नए तरह के प्रयास की जरूरत है कि #टीचिंगक्वालिटीजस्टूडेंटपरफॉर्मेंस पर फोकस किया जाए। अपनी क्षमता को समझा जाए। उसी के अनुसार निर्णय लिया जाए। भीड़ बढ़ाकर वास्तविक लोगों की जरुरत को प्रभावित न होने दिया जाए। यूपीएससी में अभी भी जो लोग इस खेल को जितनी जल्दी समझ गए, वे आगे निकल गए। नहीं तो ट्रोलर गैंग हम जैसों को भी नहीं छोड़ता। मेरी कोरा आईडी को भी ब्लॉक करवा दिया है जिस पर मैं कई सालों से बच्चों के साथ निशुल्क और जरुरत अनुसार कोशिश कर रहा था।

संस्थान में प्रवेश और भारी फीस किसी के नाम पर और पढ़ाई किसी और के …ये साँठगाँठ ही मुख्य मुद्दा है,..यही हिन्दी वालों का हाल ए यूपीएससी है।

लेखक : उपेन्द्र सिंह