लद्दाख खुबानी (Apricot)


चर्चा में क्यों ?

लद्दाख उत्पाद ब्रांड के तहत लद्दाख खुबानी के निर्यात को केंद्र सरकार से प्रोत्साहन दिया जा रहा है

मुख्य बिंदु :-

  • लद्दाख से कृषि और खाद्य उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय निर्यात को बढ़ावा देने वाली अपनी संस्था एपीडा के माध्यम से ‘लद्दाख एप्रिकोट’ यानी लद्दाख खुबानी ब्रांड के तहत लद्दाख से निर्यात बढ़ाने के लिए खुबानी मूल्य श्रृंखला के हितधारकों को सहायता देने की प्रक्रिया में है।
  • ऐसा अनुमान है कि खुबानी और अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की एपीडा की पहलों से क्षेत्र के समग्र विकास को गति मिलेगी।
  • एपीडा की निर्यात को प्रोत्साहन देने की रणनीति में खुबानी की खेती से एक समान और बेहतर गुणवत्ता हासिल करने के लिए मुख्य रूप से खुबानी के बाग/ पेड़ों के लिए कैनोपी प्रबंधन पर जोर दिया गया है।
  • इससे टिकाऊ विपणन, उत्पाद विकास, अनुसंधान और विकास (आरएंडडी), निगरानी में वृद्धि एवं खुबानी के प्रचार में सहायता मिलेगी। खुबानी लद्दाख के महत्वपूर्ण फलों में से एक है और स्थानीय स्तर पर ‘चुली’ के नाम से जानी जाती है।
  • एपीडा ने लद्दाख के बागवानी विभाग के साथ समन्वय में कारगिल और लेह में कैनोपी प्रबंधन के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाया है, जहां शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी, कश्मीर (एसकेएयूएसटी- कश्मीर) और डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च (डीआईएचएआर) के वैज्ञानिक किसानों को एक समान फसल हासिल करने के बेहतर तरीकों से उनके खुबानी के बाग/ पेड़ों के प्रबंधन में सहायता करेंगे।
  • एपीडा ट्रांस-हिमालयी लद्दाख की खुबानी का बेहतर मूल्य प्राप्त करने के उद्देश्य से ताजा खुबानी, परिवहन प्रोटोकॉल और ‘लद्दाख खुबानी’ ब्रांड के प्रचार के लिए पैकेजिंग को मजबूत करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह क्षेत्र इनकी बेहतर गुणवत्ता के लिए जाना जाता है।
  • लद्दाख खुबानी के लिए जीआई टैग हासिल करने की दिशा में भी काम जारी है। विशेष रूप से, लद्दाख में उत्पादित खुबानी का बड़ा हिस्सा स्थानीय स्तर पर खा लिया जाता है और इसकी कम मात्रा ही शुष्क रूप में बेची जाती है।
  • किसी भी उत्पाद के निर्यात को प्रोत्साहन देने में लॉजिस्टिक समर्थन की अहम भूमिका को देखते हुए, क्षेत्र से निर्बाध निर्यात के लिए एपिडा मार्केट संपर्क योजना- परवाज (पीएआरवीएजेड) की तर्ज पर वायु और पास के अंतर्राष्ट्रीय निकासी बंदरगाह तक सड़क के माध्यम से खुबानी के लिए लॉजिस्टिक समर्थन बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है।
  • लद्दाख केंद्र शासित क्षेत्र के साथ सहयोग में एपीडा, ग्रेडिंग लाइंस के साथ एकीकृत पैक हाउस सुविधाओं, कोल्ड स्टोरेज के साथ प्री-कूलिंग यूनिट और पैकहाउस/ निकासी बंदरगाहों तक इंसुलेटेड/ रेफ्रिजरेटेड परिवहन, प्री शिपमेंट सुविधाएं यानी इरेडिएशन जैसी सामान्य इन्फ्रास्ट्रक्चर सुविधाएं, वैपर हीट ट्रीटमेंट, आयात करने वाले देशों की फायटो सैनिटरी आवश्यकताओं के अनुपालन के लिए हॉट वाटर डिप ट्रीटमेंट जैसे निर्यात इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर काम कर रहा है।
  • एपीडा ने वर्ष 2021 के दौरान केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से ताजा खुबानी फलों के निर्यात की पहचान की थी और खुबानी सीजन 2021 के अंत में परीक्षण के तहत इसकी दुबई को आपूर्ति की गई थी। इसके अनूठे स्वाद और सुगंध के कारण उत्पाद की स्वीकार्यता के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्पाद की खासी मांग थी।
  • एपीडा ने 14 जून, 2022 को लेह में एक अंतर्राष्ट्रीय क्रेता-विक्रेता बैठक का भी आयोजन किया था, जो खुबानी की खेती का सीजन शुरू होने से ठीक पहले हुई थी। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से खुबानी और अन्य कृषि उत्पादों के उत्पादकों और आपूर्तिकर्ताओं के साथ संवाद के लिए भारत, अमेरिका, बांग्लादेश, ओमान, दुबई, मॉरिशस आदि देशों के 30 से ज्यादा खरीदार एकजुट हुए थे।
  • इसके परिणामस्वरूप 2022 सीजन के दौरान पहली बार लद्दाख से 35 एमटी ताजी खुबानी का विभिन्न देशों को निर्यात किया गया। परीक्षण के तहत 2022 सीजन के दौरान सिंगापुर, मॉरिशस, वियतनाम जैसे देशों को भी शिपमेंट भेजी गई।
  • 15,789 टन के कुल उत्पादन के साथ लद्दाख देश का सबसे बड़ा खुबानी उत्पादक है जो कुल उत्पादन का लगभग 62 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में लगभग 1,999 टन सूखी खुबानी का उत्पादन किया, जिससे यह देश में सूखी खुबानी का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। लद्दाख में खुबानी की खेती का कुल क्षेत्रफल 2,303 हेक्टेयर है।

लद्दाख खुबानी के बारे में :-

  • लद्दाख की देशी खुबानी जीनोटाइप में बेजोड़ और कई अहम खूबियां हैं, जिनमें उच्च टीएसएस कंटेंट, देर से और ज्यादा समय तक फूल आना और फल का पका रहना, सफेद सीड स्टोन फेनोटाइप शामिल हैं। इसे दुनिया भर में विभिन्न देशों को निर्यात किया जा सकता है।
  • लद्दाख की खुबानी की विशेषता और प्रीमियम गुणवत्ता को देखते हुए लद्दाख के वैश्विक परिदृश्य में खुबानी उत्पादन और निर्यात के केंद्र के रूप में उभरने की पर्याप्त संभावनाएं हैं।
  • लद्दाख की खुबानी को उसके स्वाद और स्टोन कलर के आधार पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। कड़ुवी गुठली वाले फलों को खंते कहते हैं, जिसका मतलब है कड़ुवा। वहीं मीठी गुठली वाले फलों को न्यारमो कहा जाता है, जिसका मतलब है मीठा।
  • इन्हें सीड स्टोन कलर के आधार पर दो उप-समूहों में बांटा गया है। सफेद सीड स्टोन वाले फल को रक्तसे कार्पो (रक्तसे का मतलब है बीज, कार्पो का मतलब है सफेद), वहीं भूरे सीड स्टोन वाले फल को रक्तसे नाकपो यानी न्यारमो (काला बीज) कहा जाता है।
  • लद्दाख की खुबानी बहुत मीठी होती और पूरी तरह से घुलने के कारण वह एक बेहतरीन स्वाद देती है। साथ ही वह देखने में भी आकर्षक होती है। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख खुबानी की कई किस्मों का उत्पादन करता है, जिनमें से चार से पांच किस्मों की खेती कमर्शियल उत्पादन के लिए की जाती है। इन किस्मों के लिए निर्यात के अवसर भी मौजूद हैं।
  • एपीडा वर्तमान में लद्दाख खुबानी के ब्रांड के निर्माण में निर्यात की सहायता कर रहा है। शिपमेंट के लिए फलों को स्थानीय उद्यमियों द्वारा काटा, साफ और पैक किया गया था, जिन्हें निर्यात मूल्य श्रृंखला की आवश्यकताओं पर एपीडा द्वारा तकनीकी सहायता प्रदान की गई थी।
  • लद्दाख खुबानी का यह निर्यात इस क्षेत्र से मध्य-पूर्व के देशों में अन्य समशीतोष्ण मौसम वाले फलों और जैविक उत्पादों के निर्यात की संभावना को खोलता है। लद्दाख खुबानी की मांग ओमान और कतर जैसे मध्य पूर्वी देशों से भी बार-बार आ रही हैं।
  • लद्दाख से कृषि उपज के निर्यात को बढ़ावा देने से किसानों के साथ-साथ उद्यमियों की आय में बढ़ोतरी होगी। एपीडा ने केंद्र शासित प्रदेश के बागवानी, कृषि, वाणिज्य और उद्योग विभागों और उच्च ऊंचाई अनुसंधान के रक्षा संस्थान के अधिकारियों के साथ मिलकर काम किया है और उसके लिए व्यापक कार्ययोजना तैयार कर रहा है।

ख़ुबानी के बारे में –

  • ख़ुबानी एक गुठलीदार फल है। वनस्पति-विज्ञान के नज़रिए से ख़ुबानी, आलू बुख़ारा और आड़ू तीनों एक ही “प्रूनस” नाम के वनस्पति परिवार के फल हैं। उत्तर भारत और पाकिस्तान में यह बहुत ही महत्वपूर्ण फल समझा जाता है और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह भारत में पिछले 5000 साल से उगाया जा रहा है। ख़ुबानियों में कई प्रकार के विटामिन और फाइबर होते हैं।
  • अंग्रेजी में ख़ुबानी को “ऐप्रिकॉट” (apricot) कहते हैं। पश्तो में इसे “ख़ुबानी” ही कहते हैं। फ़ारसी में इसको “ज़र्द आलू” कहते हैं। फ़ारसी में “आलू” का मतलब “आलू बुख़ारा” और “ज़र्द” का मतलब “पीला (रंग)” होता है, यानि “ज़र्द आलू” का मतलब “पीला आलू बुख़ारा’ होता है। ध्यान रहे के जिसे हिन्दी में आलू बोलते हैं उसे फ़ारसी में “आलू ज़मीनी” बोलते हैं (यानि ज़मीन के नीचे उगने वाला आलू बुख़ारा)। मराठी में इसके लिए फ़ारसी से मिलता-जुलता “जर्दाळू” शब्द है।
  • विश्व में सबसे ज़्यादा ख़ुबानी तुर्की में उगाई जाती है,मध्य-पूर्व तुर्की में स्थित मलत्या क्षेत्र ख़ुबानियों के लिए मशहूर है और तुर्की की लगभग आधी पैदावार यहीं से आती है। तुर्की के बाद ईरान का स्थान है, ख़ुबानी एक ठन्डे प्रदेश का पौधा है और अधिक गर्मी में या तो मर जाता है या फल पैदा नहीं करता। भारत में ख़ुबानियाँ उत्तर के पहाड़ी इलाकों में पैदा की जाती है, जैसे के कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, वग़ैराह।
  • सूखी ख़ुबानी को भारत के पहाड़ी इलाक़ों में बादाम, अख़रोट और न्योज़े की तरह ख़ुबानी को एक ख़ुश्क मेवा समझा जाता है और काफ़ी मात्रा में खाया जाता है। कश्मीर और हिमाचल के कई इलाक़ों में सूखी ख़ुबानी को किश्त या किष्ट कहते हैं। माना जाता है के कश्मीर के किश्तवार क्षेत्र का नाम इसीलिए पड़ा क्योंकि प्राचीनकाल में यह जगह सूखी खुबनियों के लिए प्रसिद्ध थी।
  • खुबानी कई रंगों में आती है, जैसे सफेद, काले, गुलाबी और भूरे (ग्रे) रंग। रंग से खुबानी के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन इसमें जो कैरोटीन होता है, उसमें जरूर अंतर आ जाता है। खुबानी का रंग जितना चमकीला होगा, उसमें विटामिन-सी और ई और पोटेशियम की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। सूखी खुबानी में ताजी खुबानी की तुलना में 12 गुना लौह, सात गुना आहारीय रेशा और पांच गुना विटामिन A होता है। सुनहरी खुबानी में कच्चे आम व चीनी मिला कर बहुत स्वादिष्ट चटनी बनती है। खुबानी का पेय भी बहुत स्वादिष्ट होता है, जिसे ‘एप्रीकॉट नेक्टर’ कहते हैं।

Source – PIB