प्रिय बाला साहब ठाकरे


आपको प्रणाम। अपने जीवन के समझ काल तक आपने धर्मध्वजा को फहराएं रखा। खुलकर कहते थे कि आई एम ए मैड हिन्दू… मने ऐसा हिन्दू जो सनातन रक्षार्थ मतवाला है। आपने अनेक मौकों पर धर्म की सेवा शासन-प्रशासन की सीमाओं से ऊपर जाकर की।

हालांकि अंत समय मे आप भी उस पुत्रमोह से न बाहर निकल पाएँ जिसे धृतराष्ट्र हो जाना कहा जाता है। ‘ठाकरे ऑफ पॉलिटिक्स’ में एकदम मिसफिट बैठने वाले अपने फोटोग्राफर बेटे उद्धव ठाकरे को आपने उस शिवसेना की कमान सौंप दी जिसे आपने अपनी मेधा, श्रम और दबंगई के साथ बड़ा किया था।

‘येन केन प्रकारेण’ महाराष्ट्र की कुर्सी पा जाने की लोलुपता में उद्धव इस कदर बौराये कि उन्होंने उस कांग्रेस से समर्थन लेने में भी गुरेज न किया जिससे एक बार नाता तोड़ने के बाद आप मन भर कोसते रहते थे। कुर्सी मिलते ही उद्धव को अजान से प्रेम हो गया, हिन्दू मुस्लिम एकता की नई इबारतें लिखने लगे।

अब उन्हें हनुमान चालीसा पाठ से भी गुरेज होने लगा है। कल उन्होंने अपने आवास के सामने हनुमान चालीसा पाठ कर रही सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा को गिरफ्तार करवा दिया। अब रामभक्त हनुमान चालीसा न पढ़ेंगे तो क्या इफ्तारी खाएंगे?

एक बात आपसे भी पूछनी थी कि शिवसेना तो उन लाखों कार्यकर्त्ताओं का समूह था जो पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाने के लिए मुंबई में क्रिकेट मैच न होने देते थे, उस शिवसेना का नेतृत्व उद्धव को सौंपते समय आपने कौन सी तर्क की कसौटी पर इन्हें परखा था। क्या उद्धव ने इससे पहले कभी शिवसेना के लिए काम किया था? या कभी आंदोलनों में लाठियां खाई थी?

आप जैसे नेता जो आजीवन उसूलों की बात किया करते है, ये अंत समय में एक दल को प्राइवेट इंटरप्राइजेज क्यों बना देते है जबकि ये दल एक पार्टी न होकर लोगों की भावनाएं होती है। एक बार देवों के लोक में इस बात पर विचार कीजियेगा और वहां के अन्य लोगों से भी पूछियेगा कि हमारे सॉफ्टवेयर सिस्टम में ऐसा क्या हो जाता है जो हम पुत्रमोह के दायरे में सीमित हो जाते है।

आपका प्रशंसक,
संकर्षण शुक्ला